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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir शतके उदेश TICBRA एवं वदह तुमंसि णं जाया! अम्हं एगे पुत्ते इढे कंतेत चेव जाव पब्वइहिसि, एवं खलु अम्मताओ! माणुस्सए व्याख्या- ६ भवे अणेगजाइजरामरणरोगसारीरमाणसपकामदुक्खवेयणवसणसतोवद्दवाभिभूए अधुए अणितिए असासए प्राप्तिः संझन्भरागमरिसे जलवुब्बुदसमाणे कुसग्गजलबिंदुसन्निभे सुविणगर्दसणोवमे विज्जुलयाचंचले अणिच्चे सडणप॥४॥ डणविद्धंसणधम्मे पुन्धि वा पच्छा वा अवस्सविप्पजहियव्वे भविस्सइ, से केस णं जाणइ अम्मताओ! के पुब्धि गमणयाए १, के पच्छा गमणयाए ?, तं इच्छामि णं अम्मताओ! तुज्झेहिं अन्भणुनाए समाणे समणस्स भग-1 है वओ महावीरस्स जाव पञ्चइत्तए। का त्यार पछी ते जमालि क्षत्रियकुमारे पोताना माता-पिताने आ प्रमाणे कयु के-'हे माता-पिता! हमणां मने जे तमे ए प्रमाणे कांके-हे पुत्र ! तुं अमारे इष्ट तथा कांत एक पुत्र छो-इत्यादि यावत् अमारा कालगत थया पछी तुं प्रव्रज्या लेजे." पण हे माता -पिता! ए प्रमाणे खरेखर आ मनुष्यभव अनेक जन्म, जरा, मरण अने रोगरूप शारीर अने मानसिक दुःखोनी अत्यन्त वेदनाथी | अने सेंकडो व्यसनोथी पीडित, अध्रुव, अनित्य, अने अशाश्वत छे, तेम संध्याना रंग जेवो, पाणीना परपीटा जेवो, डाभनी अणी | उपर रहेला जलबिन्दु जेवो, स्वप्नदर्शनना समान, विजळीनी पेठे चंचळ अने अनित्य के. सडवू पडवु अने नाश पामयो ए तेनो धर्म के. पहेलां के पछी तेनो अवश्य त्याग करवानो छे; हे माता-पिता! ते कोण जाणे छ के-कोण पूर्वे जशे, अने कोण पछी जशे | | माटे हे माता-पिता ! हुं तमारी अनुमतिथी श्रमण भगवंत महावीरनी पासे यावत् प्रव्रज्या ग्रहण करवाने इच्छु छु. तए णं तं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मापियरो गवं वयासी-इमं च ते जाया! सरीरगं पविसिहरू ॐ4523964ॐॐ * For Private And Personal
SR No.020109
Book TitleBhagvati Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1939
Total Pages235
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size6 MB
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