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________________ Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org तिचंपा नपरी जेणेव पुन्नभद्दे चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ २ समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिचा समणं भगवं महावीरं एवं वयासी-जहा णं देवाणुप्पियाणं बहवे अंतेवासी समणा निग्गंथा ९ शतके बाल्या छउमत्था भवेत्ता छउमत्यावक्कमणेणं अवताणोखलु अहंतहा छउमत्थे भवित्ता छउमत्थावकमणणं अवकमिए,5 उपाय प्रशासि अहन्नं उप्पन्नणाणदसणधरे अरहा जिणे केवली भवित्ता केवलिअवक्कमणेणं अवकामिए, ए णं भगवं गोयमे | 100 1000 जमालिं अणगारं एवं बयासी-जो खलु जमाली! केवलिस्स णाणे वा दसण वा सेलसि वा थंभंसि वा थूभंसि चा आवरिजह वा णिवारिज वा, जहणं तुम जमाली! उप्पन्नणाणदसणधरे अरहा जिणे केवली भवित्ता केवलिअवक्कमणेणं अवकंते तो णं इमाई दो बागरणाई वागरेहि-सासए लोए जमाली ! असासए लोए जमाली !, सासए जीवे जमाली! असासए जीवे जमाली?, तए णं से जमाली अणगारे भगवया गोयमेणं एवं वुत्ते समाणे संकिए कंम्बिए जाव कलुससमावन्ने जाए यावि होत्था, पो संचाएति भगवओ गोयमस्स किंचिवि पमोकन्वमाहाइक्वित्तए तुसिणीए संचिट्ठइ, त्यार पछी कोई एक दिवसे ते जमालि अनगार पूर्वोक्त रोगना दुःखथी विमुक्त थयो, हृष्ट, रोगरहित अने बलवान् शरीरवाळो कथयो. अने श्रावस्ती नगरीयी अने कोष्ठक चैत्यथी बहार नीकळी अनुक्रमे विचरता ग्रामानुग्राम विहार करता ज्यां चंपानगरी छे, न्यां पूर्णभद्र चैत्य छ, अने ज्यां श्रमण भगवंत महावीर छे त्यां आवे छे. आवीने श्रमण भगवंत महावीरनी अत्यन्त दूर नहि तेम अत्यन्त पासे नहि, तेम उमा रहीने श्रमण भगवंत महावीरने आ प्रमाणे कयु-'जेम देवानुप्रियना पणा शिष्यो श्रमण निग्रेन्थो -ARTICE For Private And Personal
SR No.020109
Book TitleBhagvati Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1939
Total Pages235
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size6 MB
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