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________________ Shri Mara Jain Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Sh Kailashsagarsur Gyanmandir *** व्याख्याप्राप्ति ॥८४९॥ उद्देश ॥८४९॥ * वाइए विविहे रोगायंके परिसहोवसग्गे उदिन्ने अहियासेत्तए, तं नो खलु जाया! अम्हे इच्छामो तुझ खणमवि विप्पओगं, तं अच्छाहि ताव जाया! जाव ताव अम्हे जीवामो, तओ पच्छा अम्हेहिं जाव पब्बइहिसि । ____ ज्यारे जमालि क्षत्रियकुमारने तेना माता पिता विषयने अनुकूल एवी घणी उक्तिओ, प्रज्ञप्तिओ, संज्ञप्तिओ अने विज्ञप्तिओथी ४ से कहेवाने, जणाववाने, समजावयाने, विनववाने समर्थ न थया त्यारे तेओए विषयने प्रतिकूल, अने संयमने विषे भय अने उद्वेग | करनारी एवी उक्तिओथी समजावता आ प्रमाणे कडं के 'हे पुत्र ! ए प्रमाणे खरेखर निग्रंथ प्रवचन सत्य, अनुत्तर अने अद्वितीय अदिती | छे. इत्यादि आवश्यक सूत्रमा कह्या प्रमाणे यावत् ते सर्व दुःखोनो नाश करनारु छे. परन्तु ते सर्पनी पेठे एकांत-निश्चित दृष्टिवालु, अस्त्रानी पेठे एकांत धारवालु, लोढाना जवने चाबवानी पेठे दुष्कर, अने वेल्लुना कोळीयानी पेठे निःस्वाद छे, वळी ते गंगा नदीना सामे प्रवाहे जवानी पेठे, अने बे हाथथी समुद्र तरवाना जेवं ते प्रवचन- अनुपालन मुश्केल छे. तीक्ष्ण खड्गादि उपर चालवाना जेवू [ दुष्कर ] मे, मोटी शिलाने उचकवा बरोबर छ अने तरवारनी धारा ममान व्रतर्नु आचरण करवान छे. हे पुत्र ! श्रमण निर्गथोने १ आधार्मिक, २ औद्देशिक, ३ मिश्रजात, ४ अध्यवपूरक, ५ पूतिकृत, ६ क्रीत, ७ प्रामित्य, ८ अच्छेद्य, ९ अनिःसृष्ट, १० अभ्याहृत, ११ कांतारभक्त, १२ दुर्भिक्षभक्त, १३ ग्लानभक्त, १४ वार्दलिकाभक्त, १५ प्राघूर्णकभक्त, १६ शय्यातरपिंड अने १७ राजपिंड, तेमज मूलनु भोजन, कंदर्नु भोजन, फलनु भोजन, बीजनुं भोजन अने हरित-(लीलीवनस्पति) में भोजन खावु के पीयूँ कल्पतुं नथी, वळी हे पुत्र! तुं सुखने योग्य छो पण दुःखने योग्य नथी. तेमज टाढ, तडका, भुख, तरश, चोर श्वापद, डांस अने मच्छरना उपद्रवोने, तथा बातिक, पैत्तिक, श्लैष्मिक अने संनिपातजन्य विविध प्रकारना रोगो अने तेना दुःखोने, तेमज परिषह अने * * ** For Private And Personal
SR No.020109
Book TitleBhagvati Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1939
Total Pages235
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size6 MB
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