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________________ Shri Mahavir Jain Arad www.kobatirth.org Achar t ashsagarsur Gyanmandir प्राप्तिः ॥९८३॥ सुरूवं देवकुमारसमप्पभे दारगं पयाहिसि, ॥ हे देवानुप्रिय! ए प्रमाणे खरेखर में आजे ते तेवा प्रकारनी बने तकीयावाळी शय्यामां (सुतां जागता) इत्यादि पूर्वोक्त जाण, ११शतके यावत् मारा पोताना मुखमा प्रवेश करता सिंहने स्वम मां जोइने जागी . तो हे देवानुप्रिय! ए उदार यावत् महाखमर्नु बीजु शु उदेशार कल्याणकारक फल अथवा वृत्तिविशेष थशे ? त्यार पछी ते बल राजा प्रभवती देवी पासेथी आ वात सांभळी, अवधारी हर्षित, तुष्ट, ॥९८॥ यवत् अल्हादायुक्त हृदयवाळो थयो, मेघनी धाराथी विकसित थवेला सुगंधि कदंब पुष्पनी पेठे जेतुं शरीर रोमांचित थयेलु छे अने जेनी रोमराजी उमी थयेली छे, एवो बलराजा ते स्वमनो अवग्रह-सामान्य विचार-करे छ, पछी ते स्वमसंबन्धी ईहा (विशेष विचार) करे छे. तेम करीने पोताना स्वाभाविक, मतिपूर्वक बुद्धिविज्ञानथी ते स्वमना फलनो निश्चय करे छे. पछी इष्ट, कांत, यावत् मंगल युक्त, तथा मित, मधुर अने शोभायुक्त वाणीथी संलाप करता २ ते बल राजाए आ प्रमाणे का' हे देवी! तमे उदार स्वम जोयूं , हे देवी! तमे कल्याणकारक स्वम जोय छ, यावत् हे देवी! तमे शोभायुक्त स्वप्न जो छे, तथा हे देवी! तमे आरोग्य, तुष्टि, 17 दीर्घायुप, कल्याण अने मंगलकारक स्वप्न जोडे. हे देवानुप्रिय ! तेथी अर्थनो लाभ थशे, हे देवानुप्रिये ! भोगनो लाभ थशे, हे देवानुप्रिये ! पुत्रनो लाभ थशे, हे देवानुप्रिये ! राज्यनो लाम थशे, हे देवानुप्रिये ! खरेखर तमे नव मास संपूर्ण थया चाद साडा सात दिवस वित्या पछी आपणा कुलमा ध्वजसमान, कुलमां दीवासमान, कुलमां पर्वतसमान, कुलमां शेखरसमान, कुलमां तिलकसमान, कुलनी कीर्ति करनार, कुलने आनंद आपनार, कुलनो जश करनार, कुलना आधारभूत, कुलमां वृक्षसमान, कुलनी | वृद्धि करनार, सुकुमाल हाथपगवाला, खोडरहित अने संपूर्ण पंचेन्द्रिययुक्त शरीरवाला, यावत चंद्रसमान सौम्पकारवाळा, प्रिय, AR For Private And Personal
SR No.020109
Book TitleBhagvati Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1939
Total Pages235
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size6 MB
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