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________________ Shri Mahavir Jain Aradha ra www.kobatirth.org Achar k alashsagarsur Gyanmandir A शतके उकार ॥९८॥ लाहिं कल्लाणाहिं सिवाहिं धन्नाहिं मंगल्लाहिं मस्सिरीयाहिं मियमहुरमंजुलाहिं गिराहिं संलवमाणी संलवमाणी व्यास्या पडिबोहेति पडिबोहेत्ता बलेणं रन्ना अन्भणुन्नाया समाणी नाणामणिरयणभत्तिचित्तसि भद्दासणंसि णिसीयति प्रवासिः माणिसीयित्ता आसत्था बीसत्या सुहासणवरगया बलं रायं ताहिं इटाहिं कंताहिं जाव संलयमाणी२ एवं बयासी॥९८२॥ ॥ मोतीना हार, रजत, क्षीरसमुद्र, चंद्रना किरण, पाणीना बिंदु अने रूपाना मोटा पर्वत जेवा घोळा, विशाळ, रमणीय अने दर्शहनीय, स्थिर अने सुंदर प्रकोष्ठवाळा, गोळ, पुष्ट, मुश्लिष्ट, विशिष्ट अने तीक्ष्ण दाढोबडे फाडेला मुखवाळा, संस्कारित उत्तम कमलना जेवा कोमल, प्रमाणयुक्त अने अत्यन्त सुशोभित ओष्ठवाला, राता कमलना पत्रनी जेम अत्यंत कोमळ तालु अने जीमवाळा, मृषामां रहेला, अनीथी तपावेल अने आवर्त करता उत्तम सुवर्णना समान वर्णवाळी गोळ अने विजळीना जेवी निर्मळ आंखवाळा, विशाल अने पुष्टजंघावाळा, संपूर्ण अने विपुल स्कंधवाळा, कोमल, विशद-स्पष्ट, सूक्ष्म, अने प्रशस्त, लक्षणवाळी विस्तीर्ण केसरानी छटाथी HD सुशोभित, उंचा करेला, सारीरीते नीचे नमावेला, मुन्दर अने पृथिवी उपर पछाडेल पूछडाथी युक्त, सौम्य, सौम्य आकरवाळा < लीला करता, बगासां खाता अने आकाश थकी उतरी पोताना मुखमा प्रवेश करता सिंहने स्वप्नमां जोइ ते प्रभावती देवी जागी. त्यार बाद ते प्रभावती देवी आ आवा प्रकारना उदार यावत् शोभावाळा महाखमने जोड़ने जागी अने हर्षित तथा संतुष्ट हृदयवाळी थई, यावत् मेघनी धारथी विकसित थयेला कंदचकना पुष्पनी पेठे रोमांचित थयेली (प्रभावती देवी) ते स्वमनु स्मरण करे छ, सरण | करीने पोतना शयनथी उठी त्वराविनानी, चपलतारहित, संभ्रमविना, विलंबरहितपणे राजहंससमान गतिवडे ज्यां बलराजानु शयनगृह छे त्यां आवे छे, आवीने इष्ट, कांत, प्रिय, मनोज्ञ, मनगमती, उदार, कल्याण, शिव, धन्य, मंगल्य सौन्दर्ययुक्त, मित, CCIALCCA For Private And Personal
SR No.020109
Book TitleBhagvati Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1939
Total Pages235
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size6 MB
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