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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Sh Kailashsagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ९६४ा PREMIKARORASit | (सर्वाकाशना) 'अनन्तमा भाग न्यून छे'. [प्र०] हे भगवन ! अधोलोकक्षेत्रलोकना एक आकाशप्रदेशमां शुं १ जीवो २ जीवना देशो ३ अजीवो, ४ अजीबोना देशी अने ५ अजीवना प्रदेशोछे । [उ०] हे गौतम ! जीवो नथी, पण जीवोना देशो, जीवोना प्रदशो, अजीवो, अजीवना देशो अने अजीवना प्रदेशो छे. तेमां त्यां जे जीवोना दशो छे ते अवश्य १ एकेन्द्रियजीवोना देशो छे २ अथवा P११शतके उद्देशन एकेन्द्रिय जीवोना देशो अने बेइन्द्रिय जीवनो देश छे, ३ अथवा एकेन्द्रिय जीवोना देशो अने बेइन्द्रियोना देशो छे. ए प्रमाणे ॥९६४॥ मध्यम भंगरहित बाकीना विकल्पो यावद् अनिन्द्रियो-सिद्धो संबन्धे जाणवा. यावद् 'एकेन्द्रियोना देशो अने अनिन्द्रियोना देशो' छे, तथा त्यां जे जीवना प्रदशो छे ते अवश्य एकेन्द्रिय जीवोना प्रदेशो छे, १ अथरा एकेन्द्रिय जीवोना प्रदेशो अने एक बेइन्द्रिय है जीवना प्रदेशो छे, २ अथवा एकेन्द्रिय जीवोना प्रदशो अने चेइन्द्रियोना प्रदेशो छे. ए प्रमाणे यावत् पंचेन्द्रिय अने अनिन्द्रिय अने | अनिन्द्रियो संबन्धे प्रथम भंग शिवाय त्रण मांगा जाणवा. तथा त्यां जे अजीबो छे ते वे प्रकारना कह्या छे. ते आ प्रमाणे-रूपिअ. जीव अने अरूपिअजीव. तेषां रूपिअजीवो पूर्व प्रमाणे जाणवा. अने जे अरूपिअजीबो छे ते पांच प्रकारना कह्या के. ते आ प्रमाणे-१ नोधर्मास्तिकाय धर्मास्तिकायनो देश, २ धर्मास्तिकायनो प्रदेश, ए प्रमाणे ४ अधर्मास्तिकाय संबन्धे पण जाणवू, अने ५ अद्धा समय. Pा तिरियलोगखेत्तलोगस्स णं भंते ! एगंमि आगासपएसे किं जीवा०, एवं जहा अहोलोगखेत्तलोगस्स तहेव, एवं उडलोगखत्तस्सवि, नवरं अद्धासमओ नस्थि, अरूवी चउब्विहा । लोगस्स जहा अहेलोगखत्तलोगस्स पगंमि आगासपएसे ॥ अलोगस्म ण भंते! एगमि आगासपएसे पुच्छा, गोयमा! नो जीवा नो जीवदेसा तं चेव जाव अणंतेहिं अगुरुयलहुयगुणेहिं संजुत्ते मब्बागासस्स अणंतभागूणे ।। दब्बओणं अहेलोगखेत्तलोए अणताई जीव For Private And Personal
SR No.020109
Book TitleBhagvati Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1939
Total Pages235
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size6 MB
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