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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ||८४६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir लहसगा कलमलाहिया सदुक्ख बहुजणसाहारणा परिकिलेस किच्छदुक्खसज्झा अबुजणणिसैविया सदा साहूगरहणिज्जा अणतसंसारवणा कडुग फलविवागा चुडलिव्व अमुयमाणदुक्खाणुबंधिणो सिद्धिगमण विग्धा, से केस णं जाणति अम्मताओ! के पुव्वि गमणयाए?, के पच्छा गमणयाए ?, तं इच्छामि णं अम्मताओ ! जाव पवस्तए । त्यारपछी ते जमालि नामे क्षत्रियकुमारे पोताना माता पिताने आ प्रमाणे कछु के- 'हे माता-पिता ! हमणा तमे जे मने कछु | के है पुत्र तारे विशाल कुलमां (उत्पन्न थयेली आ आठ स्त्रीओ छे) - इत्यादि यावत् तुं दीक्षा लेने, से ठीक छे. पण हे माता-पिता ! ए प्रमाणे खरेखर मनुष्य संबन्धी कामभोगो अलुची अने अशाश्वत छे; वात, पित्त, श्लेष्म, वीर्य अने लोहीने झरवावाळा छे; विष्ठा, सूत्र, श्लेष्म, नासिकानो मेल, वमन, पित्त, परु, शुक्र अने शोणितथी उत्पन्न थयेलां ; वळी ते अमनोन, खराब मूत्र अने दुर्गन्धी विष्ठाथी भरपुर छे; मृतकना जेवी गंधवाळा बच्चासथी अने अशुभ निःश्वासथी उद्वेमने उत्पन्न करे छे, बीभत्स, अल्पकाळस्थायी, हलका, अने कलमल - ( शरीरमां रहेल एक प्रकारना अशुभ द्रव्य)ना स्थानरूप होवाथी दुःखरूप अने सर्व मनुष्योने साधारण छे; | शारीरिक अने मानसिक अत्यंत दुःखवडे साध्य छे; अज्ञान जनथी सेवाएला छे; साधु पुरुषोथी हमेशां निंदनीय छे; अनंत संसारनी वृद्धि करनारा छे, परिणामे कटुकफळवाळा छे, बळता थासना पूळानी पेठे न झुकी शकाय तेवा दुःखानुबंधी अने मोक्षमार्गमा विनरूप छे. बळी हे माता-पिता ! ते कोण जाणे छे के कोण पहेलां जशे अने कोण पछी जशे ? माटे हे माता-पिता ! हुं यावद् दीक्षा लेवाने इच्छु छु.' तए णं तं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मापियरो एवं वयासी - इमे व ते जाया ! अजयषज्जयपिउपज्ञयागएसु For Private And Personal ९ शतके उद्देशः५ ॥८४६॥
SR No.020109
Book TitleBhagvati Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1939
Total Pages235
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size6 MB
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