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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥९६२॥ ११शतके उद्देशः१. ॥९६२॥ SEARCCRECENCE | हेट्ठा विच्छिन्ने मज्झे संखित्ते जहा मत्तमसए पढमुद्देसए जाव अंतं करेंति । अलोए ण भंते ! किंसठिए पन्नत्ते ?,। गोयमा! झुसिरगोलसंठिए पन्नत्ते ।। अहेलोगखत्तलोए ण भंते ! किं जीवा जीवदेसा जीवपएसा? एवं जहा इंदा दिसा तहेव निरवसेसं भाणि यव्वं जाव अद्भासमए । तिरियलोयखेत्तलोए णं भंते ! किं जीवा., एवं चेव, एवं | उड्डलोयखेत्तलोएवि, नवरं अरूवी छविहा, अद्धासमओ नत्थि।। म.] हे भगवन् ! तिर्यग्लोकक्षेत्रलोक केवा संस्थाने छ ? [उ०] हे गौतम ! ते झालरने आकारे ले. [प्र.] हे भगवन् ! ऊर्ध्वलोकक्षेत्रलोक केवा आकारे छे १ [उ.] हे गौतम! उभा मृदंगने आकारे छे. [प्र०] हे भगवन् ! लोक केवा आकारे संस्थित छ ? [उ०] हे गौतम ! लोक सुप्रतिष्ठकने आकारे संस्थित छे, ते आ प्रमाणे-"नीचे पहोळो, मध्यभागमां संक्षित-संकीर्ण"-इत्यादि सातमा शतकना प्रथम उद्देशकमां कह्या प्रमाणे कहे. (ते लोकने उत्पन्न ज्ञान दर्शनने धारण करनारा केवलज्ञानी जाणे छे अने | त्यार पछी सिद्ध थाय छे) यावद् 'सर्व दुःखोनो अन्त करे छे'. [प्र०] हे भगवन् ! अलोक केवा आकारे कह्यो छे ? [उ.] हे गौतम! अलोक पोला गोळाने आकार कह्यो छे. [प्र] हे भगवन् ! अधोलोकक्षेत्रलोक शुं जीवरूप छ, जीवदेशरूप छ, जीवप्रदेशरूप छे इत्यादि ? [३०] हे गौतम ! जेम एन्द्री दिशा संबन्धे का छे ते प्रमाणे सर्व अहिं जाणवू. यावद् अद्धासमय (काल) रूप छे'. [प्र.] हे भगवन् ! तिर्यग्लोक शुं जीवरूप छे इत्यादि ? [उ.] पूर्ववत् जाणवू. ए प्रमाणे ऊर्बलोकक्षेत्रलोक संबन्धे पण जाण; परन्तु | विशेष ए छे के ऊर्बलोकमा अरूपी द्रव्य छ प्रकारे छे, कारण के त्यां अद्धा समय नथी. लोए ण भंते ! किं जीवा जहा बितियसए अस्थिउद्देसए लोयागासे, नवरं अरूवी सत्तवि जाव अहम्मत्थि PETECRECIRCLOS EX For Private And Personal
SR No.020109
Book TitleBhagvati Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1939
Total Pages235
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size6 MB
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