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________________ Shri Mahavir Jain Arachan d www.kobatirth.org Acharya Sh lashsagarsuri Gyanmandir प्रशतिः उशार ॥९५३॥ CRICKMADHAN ज्यां तापसोतुं यावद् आश्रम के त्यां आवे छे, आवीने उपकरण वगेरेने मूके छे, अने हस्तिनापुर नगरमां शृंगाटक, त्रिक, याबद्र राजमार्गोमा घणा माणसोने एम कहे छे, यावद् एम प्ररूपे छे के, 'हे देवानुप्रियो ! मने अतिशयवालं ज्ञान अने दर्शन उत्पन्न थयु छे, अने आ लोकमा ए प्रमाणे सात द्वीपो अने सात समुद्रो छे,' त्यारवाद ते शिवराजर्षि पासेथी ए प्रकारर्नु वचन सांभळी, अवधारी हस्तिनापुर नगरमा शृंगाटक, त्रिक, यवद् राजमार्गोमा घणा माणसो परस्पर एम कहे छे-यावद् एम प्ररूपे छे-हे देवानुप्रियो ! शिवराजर्षि आ प्रमाणे कहे छे-यावत् प्ररूपे छे के हे देवानुप्रियो ! मने अतिशयवालं ज्ञान अनं दर्शन उत्पन्न थयुं छे, यावत् ए प्रमाणे आ लोकमां सात द्वीप अने सात समुद्रो छे, त्यार पछी नथी, ते एम केवी. रीते होय? तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे परिसा जाव पडिगया । तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी जहा बितियसग नियंदुहेसए जाव अडमाणे बहुजणसई निसामेड़ बहुजणो अन्नमन्नस्स एवं आइक्खइ एवं जाव परूवेइ-एवं खलु देवाणुप्पिया! सिवे रायरिसी एवं आइक्खइ जाव परवेड़अस्थि पं देवाणुप्पिया! तं चेव जाव बोच्छिन्ना दीवाय समुहा य, से कहमेयं मन्ने एवंी, तए णं भगवं गोयमे बहुजणस्स अंतियं एयमटुं सोचा निसम्म जाव सड्ढे जहा नियंटुद्देसए जाव तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य, से कहमेयं भंते ! एवं?, गोयमादि समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं वयासी-जन्न गोयमासे बहुजणे अन्नमन्नस्स एवमातिक्खइ तं चेव सव्वं भाणियन्वं जाव भंडनिकखेवं करेति हस्थिणापुरे नगरे सिंघाडग० तं चेष जाव वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य, तए ण तस्स सिवस्स रायरिसिस्स अंतिए एयम8 सोचा निसम्म तं चैव MkOCAISA For Private And Personal
SR No.020109
Book TitleBhagvati Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1939
Total Pages235
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size6 MB
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