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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir ८ शतके उद्दशः६ ॥६६॥ पेठे अहीं पण तेज आलापक कहे वा, यावल ते निर्ग्रन्थ विराधक नथी. निर्ग्रन्थे ग्रामानुग्रामविहार करतां कोई एक अकृत्यस्थानव्याख्या- प्रतिसेवन कयु होय, पछी तेने एम थाय के, हुं प्रश्चम तेनुं आलोचनादि करूं-इत्यादि पूर्ववत् अहीं पण तेज आठ आलापक कहेवा, प्रज्ञप्तिः यावत् 'ते निर्ग्रन्थ विराधक नथी.' [प्र०] कोई साधीए आहार ग्रहण करवाना इरादाथीगृहपतिना घरे प्रवेश करता कोइएक अकृ॥३६॥ त्यस्थानतुं प्रतिसेवन कयु, पछी तेने एम थाय के हुं प्रथम आ अकृत्यस्थाननं आलोचन करूं, यावत् तपकर्मनो स्वीकार करूं. त्यार पछी प्रवर्तिनी (वृद्ध साध्वी)नी पासे आलोचना करीश, यावत् तपकर्मनो स्वीकार करीश, (एम विचारी) ते साध्वी ते प्रवर्तिनीनी पासे जवा निकळे, अने त्यां पहोंच्या पड़ेला ते प्रवर्तिनी मुंगी थइ जाय, तो हे भगवन् ! शुं ते साध्वी आराधक छे के विराधक छे? [उ०] हे गौतम! ते साध्वी आराधक छे पण विराधक नथी, जेम निर्ग्रथने त्रण आलापको कह्या छे तेम' ते साध्वी जवा नीकळे' | इत्यादि त्रण आलापको साध्वीने कहेवा. यावत् 'ते आराधक छे पण विराधक नथी.' से केगटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-आराहए, नो विराहए ?, गोयमा! से जहानामए-केइ पुरिसे एगं महं उन्नालोमं वा गयलोमं वा मणलोमं वा कप्पासलोमं वा तणसूयं वा दुहा वा तिहा वा संखेजहा वा छिदित्ता अगणिकायंसिपक्विवेज्जासे नूर्ण गोयमा! छिजमाणे छिन्ने पक्खिप्पमाणे पक्वित्ते दज्झमाणे दड्ढेत्ति वनव्वं सिया?, हंता भगवं ! छिज्जमाणे छिन्ने जाव दड्डेत्ति वत्तब्वं सिया, से जहा वा केइ पुरिसे बत्थं अहतं वा धोतं बाबा तंतुग्गयं वा मंजिहादोणीए पक्विवेज्जा से नूणं गोयग! उक्विपमाणे उक्खित्ते पविखप्पमाणे पक्खित्ते रज्जमाणे रत्तेत्ति वत्तब्बं सिया?, हंता भगवं ! उक्खिप्पमाणे उक्खित्ते जाव रत्तेत्ति वत्तव्वं सिया, से तेणढेणं For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
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