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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥६५४॥ %%%% र शतके उद्देशः ५ ॥६५४॥ णेत्तए, तंजहा-इंगालकम्मे वणकम्मे साडीकम्मे भाडीकम्मे फोडीकम्मे दंतवाणिज्जे लक्खवाणिज्जे केसवाणिजे रसवाणिजे विसवाणिजे जतपीलणकम्मे निल्लंछणकम्मे दवग्गिदावणया सरहदतलायपरिसोसणया असतीपोसणया, इचेते समणोवासगा सुक्का सुक्काभिजातीया भविया भवित्ता कालमासे कालं किचा अन्नयरेसुदेवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति ॥ (सूत्रं ३२९)॥ आजीविक (गोशालक) ना सिद्धांतनो आ अर्थ छ- 'दरेक जीवो अक्षीणपरिभोगी-सचित्ताहारी छे, तेथी तेओ (लाकडी वगेथी) हणीने (तरवार वगेरेथी) छेदीने, (शूलादिथी) भेदीने, (पांख वगेरेना कापवावडे) लोप करीने (चामडी उतारवाथी) विलोपीने | अने विनाश करीने खाय छे. (अर्थात् बीजा जीवो हननादिर्मा तत्पर छे) पण आजीवकना मतमां आ बार आजीविकोपासको कह्या छे, ते आ प्रमाणे-१ ताल, २ तालप्रलंब, ३ उद्विध, ४ संविध, ५ अवविध, ६ उदय, ७ नामोदय, ८ नर्मोदय, ९ अनुपालक, १. शंखपालक, ११ अयंबुल अने १२ कातर-ए बार आजीविकना उपासको छे, तेओनो देव अर्हत् (गोशालक) छे, मातापितानी | सेवा करनारा तेओ आ पांच प्रकारना फलने खाता नथी; ते आप्रमाणे-१ उंबराना फल, २ वडना फल, ३ बोर, ४ सनरनां फल अने ५ पीपळाना फल, तेओ डुंगळी, लसण अने कंदमूलना विवजक (त्यागी) छे. तेओ अनिलाछित (खसी नहि करायला), नहि नाथेला (नाक विधेला) एवा बळदोवडे त्रसप्राणीनी हिंसा विवर्जित व्यापारवडे आजीविका करे छे. ज्यारे ए गोशालकना श्रावको | पण ए प्रकारे धर्मने इच्छे छे, तो पछी जे आ श्रमणोपासको छे तेओने माटे शुं कहेवू ? जेओने आ पंदर कर्मादानो स्वयं करवाने. बीजा पासे कराववाने अने अन्य करनारने अनुमति आपवाने कल्पता नथी, ते कर्मादानो आ प्रमाणे छे-१ अंगारकर्म, २ वनकर्म, ENA- 4 For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
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