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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ८ शतके उद्देशः२ ॥६३३॥ केवलज्ञानी छे, जेओ अज्ञानी छे तेओ अवश्य बेअज्ञानवाला छे. जेमके मतिअज्ञानी अने श्रुतअज्ञानी. नेत्रेन्द्रिय अने घाणेन्द्रियलब्धिवाळाने श्रोत्रेन्द्रियलब्धिवाळानी पेठे (सू०८७.) चार ज्ञान अने प्रण अज्ञान जाणवा नेत्रेन्द्रिय अने घ्राणेन्द्रियलब्धिरहित जीवोने श्रोत्रेन्द्रियलब्धिरहित जीवोनी पेठे वे ज्ञान, बे अज्ञान अने एक केवलज्ञान होय छे. जिहवेन्द्रियलन्धिवाळाने चार ज्ञान अने त्रण अज्ञान भजनाए होय छे. [प्र०] जिवेन्द्रियलब्धिरहित जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी? [उ०] हे गौतम ! तेओ ज्ञानी पण छे, अने अज्ञानी पण छे. जेओ ज्ञानी छे तेओ अवश्य एक केवलज्ञानी छे, जेओ अज्ञानी छे तेओ अवश्य बे अज्ञानवाळा छे; ते आ प्रमाणे-मतिअज्ञानी अने श्रुतअज्ञानी. स्पर्शेन्द्रियलब्धिवाळाने इन्द्रियलब्धिवाळानी पेठे (सू०८६. भजनाए चार ज्ञान अने त्रण अज्ञान जाणवा. स्पर्शेन्द्रियलब्धिरहित जीवोने इन्द्रियलब्धिरहित जीवोनी पेठे (सू० ८७.) एक केवलज्ञान होय छे. ॥ ३१९ ।।। सागारोवउत्ता णं भंते! जीवा किं नाणी अन्नाणी ?, पंच नाणाई तिन्नि अन्नाणाई भयणाए ॥ आभिणिबोहियनाणसागारोवत्ता णं भते!०चत्तारि णाणाई भयणाए । एवं सुयनाणसागारोवउत्तावि । ओहिनाणसा. गारोषउत्ता जहा ओहिनाणलद्धिया, मणपजवनाणसागारोवउन्ना जहा मणपजवनाणलद्धिया, केवलनाणसागारोवउत्ता जहा केवलनाणलद्धिया, मइअन्नाणसागरोवउत्ताण तिन्नि अन्नाणाई भयणाए, एवं सुयअन्नाणसागारोवउत्तावि. विभंगनाणसागारोवउत्ताणं तिन्नि अन्नाणाई नियमा ॥ अणागारोवउत्ता णं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी, पंच नाणाई तिन्नि अन्नाणाई भयणाए, एवं चक्खुदसणअचक्खुदंसणअणागारोवउत्तावि, नवरं चत्तारि णाणाई तिन्नि अन्नाणाई भयणाए, ओहिदसणअणागारोवउत्ताणं पुच्छा, गोयमा! नाणीवि अन्नाणीवि, SARKARIGINA. For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
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