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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | ८ शतके उद्देश:२ ६०९॥ जातिआशीविष अने कर्माशीविष. [प्र०] हे भगवन ! जातिआशीविषो केटला प्रकारना कह्या छ ? [उ०] हे गौतम ! ते चार प्रकाव्याख्या रना कया छे; ते आ प्रमाणे-१ वृश्चिकजातिआशीविष, २ मंडूकजातिआशीविष, ३ उरगजातिआशीविष अने ४ मनुष्यजातिआशीविष. प्रज्ञप्तिः [प्र०] हे भगवन् ! वृश्चिकजातिआशीविषना विषनो केटलो विषय कह्यो छे?-अर्थात वृश्चिकजातिआशीविषोना विषतुं सामर्थ्य केटलुं| ॥३०९॥ दछ ? [उ०] हे गौतम! वृश्चिकजातिआशौविष अर्धभरतक्षेत्र प्रमाण शरीरने विषवडे विदलित-नाश-करवा विषयी व्याप्त करवा समर्थ छे. एटलं तेना विपर्नु सामर्थ्य छ, पण संप्राप्ति-संबन्धवडे तेओए तेम कर्य नथी, तेओ करता नथी, अने करशे पण नहि. म०] मंडूकजातिआशीविषना विषनो केटलोविषय के ? [उ०] हे गौतम ! मंडूकजातिआशीविष पोताना विषथी भरतक्षेत्र-प्रमाण ४ा शरीरने व्याप्त करवा समर्थ छे. बाकी सर्व पूर्वनी पेठे जाणवू, यावत् संप्राप्तिबडे तेम करशे नहि. ए प्रमाणे उरगजातिआशीविष * संबन्धे पण जाणवू, परन्तु विशेष ए छे के ते उरगजातिआशीविष जंबूद्वीपप्रमाण शरीरने पोताना विषथी व्याप्त करवा समर्थ | के चाकी सर्व पूर्ववत जाणg; यावत् संप्राप्तिथी तेम करशे नहि. ए प्रमाणे मनुष्यजातिशीविप संबन्धे पण जाणवू, परन्तु एटलो विशेष छे के ते मनुष्यक्षेत्रप्रमाण शरीरने पोताना विषथी व्याप्त करवा समर्थ छे. बाकी सर्व पूर्ववत् जाण; यावत् | | संप्राप्तिथी तेम करशे नहि. जइ कम्मआसीविसे किं नेरइयकम्मासीविसे तिरिक्खजोणियकम्मआसीविसे मणुस्सकम्मआसीविसे देवकम्मासीविसे, गोयमा! नो नेरइयकम्मासीविसे, तिरिक्वजोणियकम्मासीविसेवि मणुस्मकम्मा० त देवकम्मासी०, जइ तिरिक्खजोणियकम्मासीविसे किं एगिदियतिरिक्खजोगियकम्मासीविसे जाव पंचिं. CHHArsary For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
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