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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्राप्तिः ७६७॥ CHAR ज्ञान, अवधिज्ञान अने मनःपर्यवज्ञानमा होय. [प्र०] हे भगवन् ! ते (अवधिज्ञानी) सयोगी होय के अयोगी होय ? [उ.] पूर्वे कह्या प्रमाणे योग, उपयोग, संघयण, संस्थान, उंचाइ, अने आयुष् ए बधा जेम 'असोचा' ने कह्या (सू०१२-२०) तेम अहीं कहेवां. [प्र०] हे भगवन् ! ते (अवधिज्ञानी) शुं वेदसहित होय-इत्यादि प्रश्न. [उ.] हे गौतम ! वेदसहित होय के वेदरहित पण |९ शतके | होय. [प्र०] हे भगवन् ! जो वेदरहित होय तो झुं ते उपशांतवेदवाळो होय के क्षीणवेदवाळो होय ? [उ०] हे गौतम ! उपशांतवे-16 उद्देशन दवाळो न होय, पण श्रीणवेदवाळो होय. [प्र०] हे भगवन् ! जो वेदसहित होय तो शुं ते स्त्रीवेदवाळो होय, पुरुषवेदवाळो होय, ७९७ 5 नपुंसकवेदवाळो होय के पुरुषनपुंसकवेदवाळो होय [उ०] हे गौतम ! ते स्त्रीवेदवाळो होय, पुरुषवेदवालो होय के पुरुषनपुंसकवेदवाळो पण होय. प्र०] हे भगवन् ! ते (अवधिज्ञानी) शुंसकपायी होय के अकषायी होय ? [उ०] हे गौतम! ते सकषायी होय के अक| पायी पण होय. [म.] हे भगवन् ! जो ते अकषायी होय तो शुं उपशांतकषायी होय के क्षीणकषायी होय ? [उ.] हे गौतम ! उपशांतकषायी न होय, पण क्षीणकषायी होय. [प्र०] हे भगवन् ! जो सकषायी होय तो ते केटला कषायोमा होय ? [उ.] हे गौतम! ते चार कषायोमा, त्रण कपायोमां, वे कषायोमां के एक कषायोमा होय. जो चार कषायोमां होय तो संज्वलन क्रोध, मान, माया, अने लोभमा होय. जो त्रण कषायमा होय तो संज्वलन मान, माया अने लोभमां होय. जो वे कषायोमां होय तो ज्वलन माया अने लोभमा होय. अने जो एक कषायमा होय तो एक संज्वलन लोभमा होय. तस्स णं भंते! केवतिया अज्झवसाणा पण्णत्ता,गोयमा! असंखेजा, एवं जहा असोचाए तहेव जाव केवलवरनाणदंसणे समुपजह, से णं भंते! केवलिपन्नत्ते धम्मं आघवेज वा पन्नवेज वा परवेज वा ?, हंता आघवेज्ज वा For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
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