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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandi न्याख्या- कार्मण तथा स्पर्शेन्द्रियप्रयोगपरिणत छे ते पण ] ए प्रमाणे जाणवा. ए प्रकारे अनुक्रमे सर्व जाणवं. जेने जेटलां शरीर अने | प्रज्ञप्तिः इन्द्रियो होय तेने तेटलां कडेवां, यावत् जे पुद्गलो पर्याप्तसर्वार्थसिद्धअनुचरौपपातिकदेवपंचेन्द्रिय-वैक्रिय, तैजस अने कार्मण ८ शतके तथा श्रोत्रेन्द्रिय यावत् स्पर्शेन्द्रियप्रयोगपरिणत छे ते वर्णथी कालावणे अने यावत् आयतसंस्थानपणे पण परिणत छे. ए प्रमाणे ए|8 ॥५८९॥ | उद्देशः१ नव दंडको कह्या. ।। ३०९ ॥ ॥५८९॥ मीसापरिणया णं भंते ! पोग्गला कतिविहा पण्णता ?, गोयमा ! पंचविहा पण्णत्ता, तंजहा-एगिदियमीसापरिणया जाव पंचिंदियमीसापरिणया, एगिदियमीसापरिणया णं भंते ! पोग्गला कतिविहा पण्णत्ता?, गोयमा! एवं जहा पओगपरिणपहिं नव दंडगा भणिया एवं मीसापरिणएहिवि नव दंडगा भाणियब्वा, तहेव सब्वं निरवसेसं, नवरं अभिलावो मीसापरिणया भाणियब्वं, सेसं तं चेव, जाव जे पज्जत्ता सव्वट्ठसिद्धअणुत्तर जाव आययसंठाणपरिणयावि ॥ (मत्रं ३१०)॥ [म०] हे भगवन् ! मिश्रपरिगत पुद्गलो केटला प्रकारना कह्या छ ? [उ०] हे गौतम! पांच प्रकारना कह्या छे; ते आ प्रमाणे Pएकेन्द्रियमिश्रपरिणत अने यावत् पंचेन्द्रियमिश्रपरिणत. [प्र०] हे भगवन् ! एकेन्द्रियमिश्रपरिणतपुद्गलो केटला प्रकारना छे ? उ०] हे गौतम ! जेम प्रयोगपरिणत पुद्गलो संबन्धे नव दंडक कह्या तेम मिश्रपरिणतपुद्गलो संबन्धे पण नव दंडक कहेवा, तेम | वाकीनुं सर्व कहेवू, परन्तु विशेष ए छे के [प्रयोग परिणतने स्थाने 'मिश्रपरिणत' एवो पाठ कहेवो. बाकी बधुं ते प्रमाणे जाणवू. यावत् जे पुद्गलो पर्याप्तसर्वार्थसिद्धअनुत्तरौपपातिकप्रयोगपरिणत हे ते आयतसंस्थानरूपे पण परिणत छे. ॥ ३१॥ RAP91 For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
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