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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir &ा व्याख्याप्राप्ति ॥७१५॥ लवणे णं भंते! समुद्दे केवतिया चंदा पभासिंसु वा पभासिंति वा पभासिस्संति वा ३ एवं जहा जीवाभिगमे जाव ताराओ॥ धायइसंडे कालोदे पुक्खरवरे अभितरपुक्खरद्धे मणुस्सखेत्ते, एएसु सब्वेसु जहा जीवाभिगमे का९सके |जाब-'एगससीपरिवारो तारागणकोडाकोडीणं।' पुक्खरद्धे णं भंते ! समुद्दे केवइया चंदा पभासिंसु वा!, एवं उद्देशान सब्वेसु दीवसमुद्देसु जोतिसियाणं भाणियब्बंजाव सयंभूरमणे जाव सोभं सोभिंसु वा सोभंति वा सोभिस्संति |७४५॥ | वा । सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति( सूत्रं ३६३ ) नवममए बीओ उद्देसो समत्तो॥९-२॥ ६ [म.] हे भगवन् ! लवण समुद्रमा केटला चंद्रोए प्रकाश कर्यो, केटला प्रकाश करे छे अने केटला प्रकाश करशे ? [उ.] |ए प्रमाणे जेम जीवाभिगम सूत्रमा कां छे तेम तारानी हकीकत सूधी सर्व जाणवू. धातकिखंड, कालोदधि, पुष्करवर द्वीप, अभ्यंतर पुष्कराध अने मनुष्यक्षेत्रमां-ए सर्व स्थळे जीवाभिगम सूत्रमा कह्या प्रमाणे यावत् "एक चंद्रनो परिवार कोटाकोटि तारागणो होय छे" त्यां सूधी सर्व जाणवू [प्र०] हे भगवन् ! पुष्करोद समुद्रमा केटला चंद्रोए प्रकाश कर्यो ?-इत्यादि [उ०] ए रीते [ जीवाभिगम सूत्रमा कह्या प्रमाणे ] सर्व द्वीप अने समुद्रोमां ज्योतिष्कोनी हकीकत यावत् 'स्वयंभूरमणसमद्रमा छे. यावत् शोभ्या, शोभे छे अने शोभशे' त्यां सुधी कहेवी. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे, [एम कही यावद् भगवान् | | गौतम विहरे छे.] ॥ ३६३॥ भगवत् सुधर्मखामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमत्रना ९ मा शतकमां बीजा उद्देशानो मूलार्थ संपुर्ण थयो. For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
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