SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ||७४२॥ 31 शतके | उद्देश:१० ॥७४२॥ तेणद्वेणं गोयमा! एवं वुच्चइ सिद्ध नो पोग्गली, पोग्गले । सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति ॥ (सूत्रं ३६०)॥८-१०॥ अट्ठमसए दसमोः समत्तं अट्ठमं सयं ॥ ८ ॥ [प्र.] हे भगवन् ! शुं जीव पुद्गली छे के पुद्गल छे ? [उ०] हे गौतम ! जीव पुद्गली पण छे अने पुद्गल पण छे. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के 'जीव पुद्गली पण छे अने पुद्गल पण छ' ? [३०] हे गौतम ! जेम कोइ एक पुरुष छत्रवडे छत्री, दंडवडे दंडी. घटबडे घटी, पटवडे पटी अने करवडे करी कहेवाय छे तेम जीव पण श्रोत्रंद्रिय. चक्षुरिंद्रिय, घाणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय अने स्पर्शनेन्द्रियने आश्रयी पुद्गली कहेवाय छे, अने जीवने आश्रयी पुद्गल कहेवाय छे. माटे हे गौतम! ते हेतुथी एम कहेवाय छे के 'जीव पुद्गली पण छे अने पुद्गल पण छे.' [प्र०] हे भगवन् ! नैरयिक पुद्गली छे के पुद्गल छे ? [उ.] हे गौतम ! ते पूर्वनी पेठे जाणवू. ए प्रमाणे यावत् वैमानिकोने पण कहेवू; परन्तु तेमा जे जीवोने जेटली इन्द्रियो होय तेने तेटली कवी. [प्र०] हे भगवन् ! शुं सिद्धो पुद्गली छे के पुद्गल छे ? [उ०] हे गौतम ! पुद्गली नथी, पण पुद्गल छे. [३०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो हो के सिद्धो यावत् पुद्गल छे ? [उ०] हे गौतम ! जीवने आश्रयी (पुद्गल) कहुं छु ते हेतुथी एम कहेवाय छे के सिद्धो पुद्गली नथी, पण पुद्गल छे. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छ. ॥ ३६० ॥ भगवत् सुधर्म खामीप्रणीत श्रीमद् भगवती सुत्रना ८ मा शतकमां १० मा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. Powcont For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy