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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥७३६॥ रिच्छेदो कह्या छे. [प्र RECECSASURRORS | णं भंते ! जीवस्स एगमेगे जीवपएसे णाणावरणिजस्स कम्मरस केवइएहिं अविभागपलिछेदेहिं आवेढिए |परिवेढिए सिया?, गोयमा! सिय आवेढियपरिवेढिए सिय नो आवेढियपरिवेढिए, जइ आवेढियपरिवेढिए ६८ शतके नियमा अणतेहिं, उद्देशः१० ___ [प्र०] हे भगवन् ! कर्मप्रकृतिओ केटली कही छे ? [उ०] हे गौतम ! आठ कर्मप्रकृतिओ कही छे. ते आ प्रमाणे-ज्ञानाव- ७३६॥ |रणीय, यावद् अन्तराय. [प्र० ह भगवन् ! नैरयिकोने केटली कर्मप्रकृतिओ कही छे ? [उ.] हे गौतम ! आठ कर्मप्रकृतिओ कही छे. ए प्रमाण सर्वजीवोने यावद् वैमानिकोन आठ कर्मप्रकृतिओ कईवी. [प्र०] हे भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्मना केटला अविभाग परिच्छेदो कह्या छ ? [उ०] हे गौतम ! अनंत अविभागपरिच्छेदो कह्या छे. [प्र.] हे भगवन् ! नरयिकोने ज्ञानावरणीयकर्मना अविभागपरिच्छेदो केटला कह्या छ ? [उ०] हे गौतम ! अनन्त अविभागपरिच्छेदो कह्या छे. ए प्रमाणे सर्वजीवोने-जाण; यावद् [प्र०] वैमानिको संबन्वे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! अनन्त अविभागपरिच्छेदो कह्या छे. जेम ज्ञानावाणीय कर्मना अविभगपरिछेदो कह्या तेम आठे कर्मप्रकृतिना अविभागपरिछेदो अन्तरायकर्म पर्यन्त यावद् वैमानिकोने कहेवा. [प्र०] हे भगवन् ! एक एक जीवनो | एक एक जीवप्रदेश ज्ञानावरणीय कना केटला अविभागपरिच्छेदो (अंशोथी) आवेष्टित-परिवेष्टित के ? [उ.] हे गौतम ! कदाचित् आवेष्टित-परिवेष्टित होय, अने कदाचित् आवेष्टित-परिवेष्टित न होय. जो आवेष्टित-परिवेष्टित होय तो ते अवश्य अनंत अविभागपरिच्छेदो वडे आवेष्टित-परिवेष्टित होय. एगमेगस्स णं भंते! नेरइयस्स एगमेगे जीवपएसे णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स केवइएहिं अविभागप HOLAGANICALCIAS . ए प्रमाणे सर्वजीवोने परिछदो है यविभागपरिच्छेदोकादो कया छे. एप्रनयिकोने ज्ञा For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
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