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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [उ.] हे मौतम ! बन्धक नथी पण अबन्धक छे. [प्र०] तैजसशरीरनो बन्धक के के अबन्धक के ? [उ०] हे गौतम ? ते तैजसश-12 भ्याख्या रीरनो बन्धक छे पण अबन्धक नथी. [प्र०] हे भगवन् जो ते (तेजस शरीरनो) बन्धक छे तो शुं देशबन्धक छे के सर्वबन्धक ८ शतके प्रज्ञप्तिः छ? [उ.] हे गौतम ! ते देशवन्धक छे, पण सर्ववन्धक नथी. [प्र०] कार्मणशरीरनो बंधक के के अबंधक छे? [उ०] हे गौतम || उद्देशः९ ॥२४॥ | तैजस शरीरनी पेठे यावत् कार्मणशरीरनो देशबन्धक छे पण सर्वबन्धक नथी. [प्र०] हे भगवन् ! जेने औदारिकशरीरनो देशबन्ध ॥७२॥ | छे ते जीव शुं वैक्रियशरीरनो बन्धक छे के अबन्धक छ? [उ०] हे गौतम! बन्धक नथी, पण अबन्धक छे. ए प्रमाणे जेम सर्वबन्धना प्रसंगे कयुं तेम अहीं देशबन्धना प्रसंगे पण यावत् कार्मण शरीर सुधो कहे. [प्र०] हे भगवन् जे जीवने क्रियशरीरनो सर्वबन्ध |ळे ते जीव शुं औदारिकशरीरनो बन्धक छे के अवन्धक छ ? [उ०] हे गौतम । बन्धक नथी पण अबन्धक छे. ए प्रमाणे आहारकमाटे पण जाणवू तेजस अने कार्मण शरीरने जेम औदारिक शरीरनी साथे कयु तेम वैक्रियशरीरनी साधे पण कहे, यावत् देशबन्धक छे पण सर्वबन्धक नथी. जस्स णं भंते ! वेउब्बियसरीरस्स देसबंधे से णं भंते ! ओरालियसरीरस्स किं बंधए अबंधए?, गोयमा! नो बंधए अबंधए, एवं जहा सम्वबंधेणं भणियं तहेव देसबंधेणविभणियं तहेव भाणियव्वं जाव कम्मगस्स।जस्सणं भंते! आहारगसरीरस्ससब्वबंधे से णं भंते! ओरालियसंरीरस्सं किं बंधए अबंधए, गोयमानो बंधए, अबंधए, एवं वैउब्वियस्सवि, तेयाकम्माणं जहेब ओरालिएणं समं भणियंतहेव भाणियब्वं । जस्स ण भंते! आहारगसरीरस्स सबंधे से णं भंते ! ओरालियसरीर० एवं जहा आहारगसरीरस्स सब्वयंघेणं भणियं तहा देसबंधेणवि For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
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