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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या ८शत प्रज्ञप्तिः उद्देशः ९ ॥७०६॥ ॥७०६॥ | मुधीना जीवो माटे जाणवू. वनस्पतिकायिकोने सर्वबन्धनुं अन्तर जघन्यथी कालनो अपेक्षाए ए प्रमाणे (त्रण समय न्यून) वे क्षुल्लक भव, अने उत्कृष्टथी असंख्यकाल-असंख्य उत्सर्पिणी अने अवसर्पिणी मुधी छे, क्षेत्रथी असंख्य लोक छ देशबन्धनुं अन्तर जघन्यथी र प्रमाणे (समयाधिक क्षुल्लक भव) जाणवू. अने उत्कृष्टथी पृथिवीकायना स्थितिकाल (असंख्य उत्सर्पिणी अवसर्पिणी) सुधी जाणवू [प्र०] हे भगवन् ! ए औदारिक शरीरना देशबन्धक, सर्वबन्धक अने अबन्धक जीवोमां कया जीवो कोनाथी यावद् विशेषाधिक के ? [उ०] हे गौतम सौथी थोडा जीवो औदारिक शरीरना सर्वबन्धक छे, तेथी अबन्धक जीवो विशेषाधिक छे, अने तेथी देशबन्धक जीवो असंख्यातगुण छे. ॥ ३४७॥ | वेउब्वियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?, गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तंजहा-एगिदियवेउब्विय| सरीरप्पयोगबंधे य पंचिंदियवेउब्वियसरीरप्पयोगबंधे य | जइ एगिदियवेउब्वियसरीरप्पयोगबंधे किं वाउक्काइयएगिदियसरीरप्पयोगवंधे य अवाउक्काइयएगिदिय एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओगाहणसंठाणे वेउब्वियसरीरभेदो तहा भाणियब्वो जाव पज्जत्तसम्बदसिद्ध भगुत्तरोववाइयकप्पातीयवेमाणियदेवपंचिंदियवेउब्वियसरीरप्पयोगबंधे य अप्पज्जत्तसव्वट्ठसिद्ध अणुत्तरांववाइय जाव पयोगबंधे य। वेउब्वियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कस्स कम्मस्स उदएणं १, गोयमा! वीरियसजोगसद्दब्वयाए जाव आउयं वा लद्धिं वा पडुच्च वेउब्वियसरीरप्प बोगनामाए कम्मस्स उदएणं वेउब्धियसरीरप्पयोगबंधे। वाउकाइयएगिदियबेउब्वियसरीरप्पयोग. पुच्छा, Pागोयमा! वीरियसजोगसहब्वयाए चेव जाव लद्धिं च पडुच वाउकाइयएगिदियवेउब्विय जाव बंधो । रयणप्प EARCRACRECAR For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
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