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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -64 ६ पण चे अने सर्वबन्ध पण छेमिक हे भगवन ! औदारिकशरीरप्रयोगवन्ध कालथी क्यांमुधी होय?[उ०] हे गौतम ! सर्वबन्ध एक व्याख्या-1४ा समय, अने देशबन्ध जघन्यथी एक समय, अने उत्कृष्ट एक समय न्यून त्रण पल्यापम सुधी होय छे. [प्र०] हे भगवन् ! एकेन्द्रिप्रज्ञप्तिः पऔदारिकशरीरपयोगबन्ध कालथी क्यांसुधी हाय? [उ०] हे गौतम! सर्वबन्ध एक समय, अने देशबन्ध जघन्यथी एक समय, उद्देशः९ ॥७०२॥ अने उत्कृष्ट एक समय न्यून बाबीशहजार वर्ष सुधी होय छे. [म.] हे भगवन् ! पृथिवीकायिकएकेन्द्रिय औदारिकशरीरप्रयोगबन्ध | ॥७०२॥ संबंधे प्रश्न. [उ०] हे गौतम! सर्वचन्ध एक समय, अने देशबन्ध जघन्यथा त्रण समय न्यून क्षुल्लक भव पर्यन्त, अने उत्कृष्ट एक समय न्यून बावीसहजार वर्ष सुधी होय छे. ए प्रमाणे सर्वजावाना सर्वबन्ध एक समय छे, अने देशबन्ध जेओने वैक्रियशरीर नथी तओने जघन्यथी प्रण समय न्यून क्षुल्लक भव पर्यन्त होय छे, अने उत्कृष्टथी जेटलो जेनी आयुष्यस्थिति छे, तेथी एक समय न्यून करवो. जेओने वैक्रिय शरीर के तेओने देशबन्ध जघन्यथी एक समय, अने उत्कृष्टथी जेटलुं जेनुं आयुष्य छे | तेटलामांथी एक समय न्यून जाणवो, ए प्रमाणे यावद् मनुष्योनो देशबन्ध जयन्यथी एक समय, अने उत्कृष्टथी एक समय न्यून त्रण पल्योपम मुधी जाणवो. ओरालियसरीरबंधंतरे णं भंते ! कालओ केवचिरं होइ ?, गोयमा ! सव्वबंधंतरं जहन्नेणं खुड्डाग भवग्गहणं तिसमयऊणं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई पुवकोडिसमयाहियाई, देसबंधंतरं जहन्नेणं एक समयं उक्को. सेणं तेत्तीसं सागरोवमाई तिसमयाहियाई, एगिदियओरालियपुच्छा, गोयमा! सव्वबंधंतरं जहन्नेणं खुड्डागं| भवग्गणं तिसमयऊणं उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई समयाहियाई, देसबंधंतरं जहन्नेणं एकं समयं उकोसेणं I Cent-***454 A0ACANCY For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
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