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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्याख्या- प्रज्ञप्तिः ॥६८४॥ णिजे णं भंते ! कम्मे कति परीसहा समोयरंति ?, गोयमा ! दो परीसहा समोयरंति, तंजहां-पन्नापरीसहे (अन्ना)नाणपरीसहे य, वेयणिजे णं भते! कम्मे कति परीसहा समोयरंति,गोयमा! एक्कारस परीसहा समोयरंति, ८ शतके तंजहा-पंचेव आणुपुवी चरिया सेना वहे य रोगे य । तणफास जल्लमेव य एक्कारस वेदणिज्जंमि ॥ ५८॥ देस उद्देशः८ णमोहणिजे ण भते ! कम्मे कति परीसहा समोयरंति ?, गोयमा! एगे दंसणपरीसहे समोयरइ, |॥६८४॥ [प्र०] हे भगवन् ! कर्मप्रकृतिओ केटला प्रकारे कही छे ? [उ०] हे गौतम ! आठ कर्मप्रकृतिओ कही छे, ते आ प्रमाणेज्ञानावरणीय, यावद् अंतराय..[प्र०] हे भगवन् ! केटला परीषहो कद्या छ ? [उ०] हे गौतम ! बावीश परीषहो कला छे, ते आ4 प्रमाणे-क्षुधापरीषह, पिपासापरीषह, यावद् दर्शनपरीषह. [प्र.] हे भगवन् ! बावीश परीपहोनो केटली कर्मप्रकृतिओमां समवतार थाय ? [उ०] हे गौतम! ते बाविश परीषहोनो चार कर्मप्रकृतिमा समवतार थाय छे, ते आ प्रमणे-ज्ञानावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, अने अंतराय. [प्र०] हे भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्ममा केटला परीषहोनो समवतार थाय ? [उ.] हे गौतम! बे परीषहोनो समवतार थाय छे ते. आ प्रमाणे-प्रज्ञापरीषह अने ज्ञानपरीपह, [प्र०] हे भगवन्! वेदनीयकर्ममा केटला परीपहोनो समवतार थाय छे ? [उ०] हे गौतम ! वेदनीयकर्ममा अग्यार परीषहो समवतरे छे, ते आ प्रमाणे-अनुक्रमे पहेला पांच परीषहो-(क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण, अने दंशमशक.) चर्या शय्या, वध, रोग, तृणस्पर्श अने मलपरिषह-ए अग्यार परिषहोनो वेदनीयकर्ममा समवतार | थाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! .दर्शनमोहयकर्ममा केटला परीपहोनो समवतार थाय छे ? [३०] हे गौतम ! तेमा एक दर्शन परीपहनो समवतार थाय के. For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
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