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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५ शतके उमेशः३ ॥३४९॥ दावियाउयं पडिसंवेदेह जाव से कहमेयं भंते ! एवं?, गोयमा। जन्नं ते अन्नउत्थिया तं व जाव परभविया- | व्याख्या उयं च, जे ते एवमाहंसु तं मिच्छा. अहं पुण गोयमा! एवमातिक्खामि जाव परवेमि अन्नमन्नघडत्ताए प्रज्ञप्तिः चिटुंति, एवामेव एगमेगस्स जीवस्स बहूहिं आजातिसहस्सेहिं बहई आउयसहस्साई आणुपुब्विगढि॥३४९॥ याई जाव चिट्ठति, एगेऽविय णं जीवे एगेणं समएणं एग आउयं पडिसंवेदेइ, तंजहा-इहभविषाउयं वा परभवियाउयं वा, जं समयं इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ नो तं समयं पर० पडिसंवेदेति, जं समयं प० नो तं समयं इहभवियाउयं प०, इहभवियाउयस्स पडिसंवेयणाए नो तं समयं पर० पडिसंवेदेइ, परभावियाउयस्स पडिसंवेयणाए नो इहभवियाउयं पडिसंवेदेति, एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एग आउयं प०, तंजहाइहभ० वा परभ० वा ॥ (सूत्रं १८२)॥ | प्र०] हे भगवन् ! अन्यतीथिको एम कहे छे, भाषे छे, जणावे छे अने प्ररूपे छे के, जेम कोइ एक जाळ होय, ते जाळमां ६ क्रमपूर्वक गांठो दीघेली होय, एक पछी एक एम वगर आंतरे ते गुंथेली होय, परंपराए गुंथेली होय, परस्पर गुंथेली होय एवी ते जाळ जेम विस्तारपणे, परस्पर भारपणे, परस्पर विस्तार तथा भारपणे अने परस्पर समुदायपणे रहे छे अर्थात् जाळ तो एक छे पण | तेमां जेम अनेक गांठो परस्पर वळगी रहेली छे तेम क्रमे करीने अनेक जन्मो साथे संबंध धरावनारां एवां घणां आउखाओ घणा जीवो उपर परस्पर क्रमे करीने गुंथाएला छे-यावत्-हे छे अने तेम होवाथी तेमांनो एक जीव पण एक समये वे आयुष्यने अनुभवे छे. ते आ प्रमाणे:-एकज जीव आ भवनुं आयुष्य अनुभवे छे तेम तेज जीव पर भवनुं पण आयुष्य अनुभवे के जे समये आ For Private and Personal Use Only
SR No.020107
Book TitleBhagvati Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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