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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir IGI 1545 आहारेंति तम्हा परिणामेति,कंदा कंदजीवफुडा मृलजीवपडिबंद्धा तम्हा आहारेन्ति तम्हा परिणामेन्ति,एवं जाव | व्याख्या-18 बीया बीयजीवफुडा फलजीवपडिबद्धा तम्हा आहारेन्ति तम्हा परिणामेन्ति ॥ (सूत्रं २७५) ।। ७ शतके प्रज्ञप्ति म०] हे भगवन! शं मूली मूलना जीवथी व्याप्त छे, कंदो कन्दना जीवथी व्याप्त छ, यावत बीजो बीजना जीवथी व्याप्त II उदशः३ ॥५१३॥ |ढ़ा[उ०] हे गौतम ! मूलो मूलना जीवथी च्याप्त छे, यावन बीजो बीजना जीवथी व्याप्त हे. [प्र०] हे भगवन् ! जो मूलो मूलना ॥५१३॥ जीनथी व्याप्त छे, यावत् बीजो बीजना जीवथी व्याप्त छे, तो वनस्पतिकायिक जीवो केवी रीते आहार करे. अने केवी रीते परिण| मावे ? [उ.] हे गौतम ! मूलो मूलना जीवथी व्याप्त ले, अने ते पृथिवीना जीव साथे संबद्ध (जोडायेला) , माटे वनस्पतिकायिक दाजीवो आहार करे छे, ए प्रमाणे यावत् बीजो बीजना जीवथी व्याप्त है, अने ते फलना जीव साथे संबद्ध व्हे, माटे ते आहार करे छे, अने तेने परिणमावे हे. ॥ २७५ ॥ अह भंते ! आलए मूलए सिंगबेरे हिरिली सिरिली सिस्सिरिली किट्टिया छीरिया छीरिविरालिया कण्हकंदे वजकंदे सूरणकंदे खेलूडे अद्दए भद्दमुत्था पिंडहलिद्दा लोही णी हू थीह थिरूगा मुग्गकन्नी अस्सकन्नी माहंडी मुसुढीजे यावन्ने तहप्पगारा सव्वे ते अणंतजीवा विविहमत्ता?, हंता गोयमा! आलुए मूलए जाव अणंतजीवा विविहसत्ता ।। (सूत्रं २७६)॥ [प्र०] हे भगवन् ! आलु (बटाटा) मूला, आदु, हिरिली, सिरिलि, सिस्सिरिलि, किट्टिका, छिरिया, छीरविदारिका, वनकंद. सूरणकंद, खेलुडा, आईभद्रमोथ, पिंडहरिद्रा, रोहिणी, हुथीहू, थिरुगा, मुद्गपर्णी, अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, सीहंढी, मुसुंढी अने तेवा For Private and Personal Use Only
SR No.020107
Book TitleBhagvati Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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