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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रज्ञप्तिः ॥५०४॥ SRAECA4 विरतिरहित, जेणे पापकर्मनो त्याग के प्रत्याख्यान कर्य नथी एवो, सक्रिय कर्मबन्धसहित, संवररहित, एकान्त दण्ड एटले हिंसा करनार अने एकान्त अज्ञ छे. सर्व प्राणोमां यावत् 'सर्व सत्वोमां प्रत्याख्यान कयु छे' ए प्रमाणे बोलनार जेने आq ज्ञान थयु होय के "आ ४७ शतके जीवो के, आ अजीयो छ, आ त्रसो छ, आ स्थावरो छे,"-तेने सर्व प्राणोमां यावत् सर्व सत्वोमां प्रत्याख्यान कयुं छे' ए प्रमाणे लउद्देशः २ बोलनारने-सुप्रत्याख्यान थाय, दुष्प्रत्याख्यान न थाय. ए प्रमाणे खरेखर ते सुप्रत्याख्यानी 'सर्व प्राणोमां यावत् सर्व सत्वोमां ५०४॥ प्रत्याख्यान कथु छे' एम चोलतो सत्य भाषा बोले डे, मृषा भाषा बोलतो नथी. ए रीते ते सुप्रत्याख्यानी, सत्यभापी, सर्व प्राणोमां यावत् सर्व सत्वोमां त्रिविधे त्रिविधे संयत, विरति युक्त, जेणे पापकर्मनो घात ने प्रत्याख्यान कयुं छे एवो, अक्रिय-कर्मबंधरहित, संवरयुक्त एकान्त पंडित पण हे. हे गौतम ! ते हेतुथी एम कहेवाय छे के यावत् कदाच दुष्प्रत्याख्यान थाय. ॥ २७० ।। कतिविहे णं भंते ! पचक्खाणे पन्नत्ते ?, गोयमा ! दुविहे पचक्खाणे पन्नत्ते, तंजहा-मूलगुणपञ्चक्खाणे य उत्तरगुणपञ्चक्खाणे य । मूलगुणपञ्चक्खाणे णं भंते ! कतिविहे पन्नत्ते?, गोयमा ! दुविहे पन्नत्ते, तंजहा-सव्वमूलगुणपञ्चक्खाणे य देसमूलगुणपच्चक्खाणे य, सव्वमूलगुणपञ्चक्खाणे णं भंते ! कतिविहे पन्नत्त ?, गोयमा ! पंचविहे पन्नत्त, तंजहा-सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं जाव सब्वाओ परिग्गहाओ चेरमणं । देसमूलगुणपञ्चक्खाणे णं भंते ! कइविहे पन्नत्त, गोयमा ! पंचविहे पन्नते, तंजहा-धूलाओ पाणाइवायाओ वेरमणं जाव चलाओ परिग्गहाओ वेरमणं। उत्तरगुणपञ्चक्खाणे णं भंते ! कतिविहे पन्नत्त ?, गोयमा! दुविहे पन्नत्त, तंजहा-सव्वुत्तरगुणपच्चखाणे य देसुत्तरगुणपञ्चक्खाणे य, सव्वुत्तरगुणपञ्चक्रवाणे णं भंते ! कतिविहे ** For Private and Personal Use Only
SR No.020107
Book TitleBhagvati Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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