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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥ ३४० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रड्ढेषि, जया णं उत्तरदेवि तदा णं धायहसंडे दीवे मंदराणं पव्बयाणं पुरच्छिमपचत्थिमेणं राती भवति ?, हंता गोयमा ! एवं चेवजाव राती भवति ॥ [प्र.] हे भगवन् ! लवणसमुद्रमां सूर्यो ईशान खूणामां उगीने अंग्नि खूणामां जाय इत्यादि पूछ. [उ०] हे गौतम! जंबूद्वीपमा सूर्यो संबंधे जे वक्तव्यता कही छे ते बधी अहीं लवण समुद्र संबंधे पण कहेवी. विशेष ए के, ते वक्तव्यतामां पाठनो उच्चार आ प्रमाणे करवोः - हे भगवन् ! ज्यारे लवणसमुद्रना दक्षिणार्धमां दिवस होय छे, इत्यादि बधुं ते प्रमाणे कहेतुं यावत्-त्यारे लवणसमुद्रमां पूर्व पश्चिमे रात्री होय छे. 'ए अभिलापवडे बधुं जाणवुं [प्र०] हे भगवन् ! ज्यारे लवण समुद्रना दक्षिणार्धमां प्रथम अवसर्पिणी होय छे त्यारे उत्तरार्धमा प्रथम अपसर्पिणी होय छे अने न्यारे उत्तरार्धमा प्रथम अवसर्पिणी होय छे त्यारे लवणसमुद्रमां पूर्व पश्चिमे अवसर्पिणी नथी होती, उत्सर्पिणी नथी होती, पण हे दीर्घजीवि श्रमण ! त्यां अवस्थित ( फेरफार विनानो) काळ को छे ? [उ०] हे गौतम! हा, तेज रीते छे अने ते यावत् - हे श्रमणायुष्मन् । इत्यादि. [प्र० ] हे भगवन् ! घातकीखंड द्वीपमां सूर्यो ईशान खूणामां उगीने, इत्यादि पूछ. [अ०] हे गौतम! जे वक्तव्यता जंबूद्वीप संबंधे कही छे तेज वक्तव्यता बघी घातकीखंड संबंधे पण जाणवी. विशेष ए के, पाठनुं उच्चारण करती वखते बधा आलापको आ रीते कहेवा - [प्र० ] हे भगवन् ! ज्यारे घातकीखंड द्वीपमा दक्षिणार्धमां दिवस होय छे त्यारे उत्तरार्धमां पण दिवस होय छे अने ज्यारे उत्तरार्धमां पण तेम होय छे त्यारे घातकीखंड द्वीपमां मंदर पर्वतनी पूर्व पश्चिमे रात्री होय छे ? [अ०] हे गौतम ! हा, एज रीते छे, यावत्-रात्री होय छे. जदा णं भंते! धायइसंडे दीवे मंदराणं पव्वयाणं पुरच्छिमेण दिवसे भवति तदा णं पञ्चत्थिमेणवि, जदा For Private and Personal Use Only ५ शतके उद्देशः १ ॥ ३४० ॥
SR No.020107
Book TitleBhagvati Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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