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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit व्याख्याप्रज्ञप्ति ॥४९५॥ KAKKAKKARAKActors [प्र०] हे भगवन् ! बंधननो छेद थवाथी कर्मरहित जीवनी गति शी रीते स्वीकाराय ? [उ.] हे गौतम ! जेम कोई एक वटाणानी शिंग, मगनी शिंग, अडदनी शिंग, सिंबलीनी (शेमळानी) शिंग अने एरंडानुं फल तडके मुक्या होय अने सुकाय त्यारे ते ७ शतके फुटीने (तेमांना वीज) पृथिवीनी एक बाजुए जाय; ए प्रमाणे हे गौतम! बंधननो छेद थवाथी कर्मरहित जीवनी गति स्वीकाराय हे. उदशः १ [प्र०] हे भगवन् ! निरिंधन ( कर्मरूप इन्धनथी मुक्त) थवाथी कर्मरहित जीवनी गति शी रीते स्वीकाराय ? [उ०] हे गौतम!8॥४९॥ इन्धनधी छूटेला धूमनी गति स्वाभाविक रीते प्रतिवन्ध शिवाय उंचे प्रवर्ते छे. ए प्रमाणे हे गौतम! [ निरिधनपणाथी-कर्मरूप इन्धनथी मुक्त थवाथी कर्मरहित जीवनी गति प्रवर्ते छे. ] [प्र०] हे भगवन् ! पूर्वना प्रयोगथी कमरहित जीवनी गति शी रीते खीकाराय ? [उ०] हे गौतम ! जेम कोइ एक धनुषधी छूटेला बाणनी गति प्रतिबन्ध शिवाय लक्ष्यना सन्मुख प्रवर्ते ठे, तेम हे गौतम ! पूर्वप्रयोगथी कर्मरहित जीवनी गति स्वीकाराय छे, हे गौतम ! ए प्रमाणे निःसंगताथी, नीरागताथी, यावत् पूर्वप्रयोगथी 8 कर्मरहित जीवनी गति स्वीकाराय छे. ॥२६४ ॥ दुक्खी भंते ! दुक्खेणं फुडे अदुक्खी दुक्खेणं फुडे ?, गोयमा ! दुक्खी दुक्खेणं फुडे, नो अदुक्खी दु. क्षेणं फुडे । दुक्खी णं भंते ! नेरतिए दुक्खेण फुडे अदुक्खी नेरतिए दुक्खेणं फुडे ?, गोयमा! दुक्खी नेरइए दुक्खेणं फुडे, नो अदुक्खी नेरतिए दुक्खेणं फुडे, एवं दंडओ जाव वेमाणियाणं, एवं पंच दंडगा नेयव्वा, दुक्खी दुक्खेणं फुडे १ दुक्खी दुक्खं परियायइ २ दुक्खी दुक्ख उदीरेइ ३ दुक्खी दुक्ख वेदेति ४ दुक्खी दुक्खं निजरेति ५॥ (सूत्रं २६५)॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020107
Book TitleBhagvati Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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