________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit
व्याख्याप्रज्ञप्तिः
॥४४९॥
पच्छा तिरियं पवित्थर नाणे २ मोहम्मीसाणसणकुमारमाहिंदे चत्तारिवि कप्पे आवरित्ताण उड्दपि य णंजाव बंभलोगे कप्पे रिट्ठविमाणपत्थडं संपत्ते एत्थ णं तमुकाए णं संनिहिए ॥
६ शतके | [प्र०] हे भगवन् ! आ तमस्काय शु कहेवाय ? शुं पृथिवी तमस्काय ए प्रमाणे कडेवाय ? शुं पाणी तमस्काय ए प्रमाणे उद्देशः कद्देवाय ? [उ०] हे गौतम ! पृथिवी, 'तमस्काय' ए प्रमाणे न कहेवाय, पण पाणी, 'तमस्काय' ए प्रमाणे कडेवाय. [प्र.] हे ॥४५९॥ भगवन ! ते शा हेतुथी ? [उ०] हे गौतम ! केटलोक पृथिवी काय एवो शुभ , जे देशने भागने प्रकाशित करे के अने केटलोक पृथिवीकाय एवो छे, जे देशने प्रकाशित नथी करतो, ते हेतुथी पूर्वोक्त प्रमाणे कहेवाय. [प्र०] हे भगवन् ! तमस्काय क्या सप्नुस्थित छे क्याथी शरू छे अने क्यां संनिष्ठित छे क्या तेनो अत छ ? [उ०] हे गौतम ! जंबुद्वीप नामना द्वीपनी बहार तिरछे असंख्य द्वीप समुद्रोने उल्लंध्या पछी अरुणवर बहार आवे छे, ते द्वीपनी बहारनी वेदिकाना अतथी अरुणोदय समुद्रने ४२ हजार योजन अवगाहीए त्यारे उपरितन जलांत आवे छे, ते उपरितन जलांतथी एक प्रदेशनी श्रेणीए अहीं तमस्क य समुस्थित छे, ते त्यांची | समुत्थित थइ १७२१ योजन उंचो जइ त्यांथी पाछो तिरछो विस्तार पामतो विस्तार पामतो सोधर्म, ईशान, सनत्कुमार || | अने माहेंद्र ए चारे कल्पोने पण आच्छादीने उंचे पण ब्रह्मलोककल्पमा रिष्टविमानना पाथडा सुधी संप्राप्त पहोंच्यो छे अने त्यां तमस्काय संनिविष्ट छे.
तमुक्काए णभंते! किंसंठिए पन्नत्ते, गोयमा! अहे मल्लगमूलसंठिए उप्पि कुक्कुडगपंजरगसंठिए पण्णत्ते,तमुक्काए |णं भंते ! केवतियं विखंभेणं केवतियं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ?, गोयमा! दुबिहे पण्णते, तंजहा-संखेचवित्थडे य|
For Private and Personal Use Only