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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्ति ॥४४४॥ शतके उद्देशः४ ॥४४॥ * % जेम नैरयिक जीवो कद्या तेम सिद्ध सुधीना बाकीना बघा जीवो माटे जाणवू. जीव अने एकेन्द्रिय वर्जीने बाकीना आहारक जीवो माटे त्रण भांगा जाणवा, अने अनाहारक जीवो माटे एकेन्द्रिय वर्जीने छ भांगा आ प्रमाणे जाणवा-१ केटलाक सप्रदेश होय, २ केटलाक अप्रदेश होय, ३ अथवा कोइ सप्रदेश होय अने कोइ अप्रदेश होय, ४ कोइ सप्रदेश होय अने केटलाक अप्रदेश होय, ५ केटलाक सप्रदेश होय अने कोइ अग्रदेश होय अने ६ केटलाक सप्रदेश होय तथा केटलाक अप्रदेश होय. सिद्धोने माटे त्रण भांगा जाणवा जेम औधिक-सामान्य जीवो कद्या तेम भवसिद्धिक-भव्य अने अभवसिद्धिक-अभव्य जीवो जाणवा. नोभवसिद्धिक तथा नोअभवसिद्धिक जीव, सिद्धोमा त्रण भांगा जाणवा. संज्ञिओमां जीवादिक त्रण भांगा जाणवा, असंझिओमां एकेन्द्रियवर्जीने त्रण भांगा जाणवा. नैरयिक, देव अने मनुष्योमा छ भांगा जाणवा. नोसंज्ञी तथा नोअसंज्ञी जीव, मनुष्य अने सिद्धोमां त्रण भांगा जाणवा. जेम सामान्य जीवो कह्या, तेम सलेश्य-लेश्यावाला जीवो जाणवा. जेम आहारक जीव कह्यो तेम कृष्णलेश्यावाळा, नीललेश्यावाला अने कापोतलेश्यावाला जीवो जाणवा, विशेष ए के, जेने जे लेश्या होय तेने ते लेश्या कहेवी. तेजोलेश्यामां जीवादिक त्रण भांगा जाणवा, विशेष ए के, पृथिवीकायिकोमां, अप्कायिकोमा अने वनस्पतिकायिकोमा छ भांगा जाणवा, पद्मलेश्यामां अने शुक्ललेश्यामां जीवादिक त्रण मांगा जाणवा, अलेश्योमां जीव अने सिद्धोमा त्रण भांगा जाणवा अने अलेय मनुष्योमा छ भांगा जाणवा. सम्यग्दृष्टिओमां जीवादिक त्रण भांगा जाणवा. विकलेन्द्रियोमा छ भांगा जाणवा. मिथ्यादृष्टिओमां एकेन्द्रिय वर्जीने त्रण भांगा जाणवा. सम्यग्मिथ्यादृष्टिओमां छ भांगा जाणवा. संयत जीवोमां जीवादिक त्रण भांगा जाणवा. असंयतोमा एकेन्द्रिय वर्जीने त्रण भांगा जाणवा, संयतासंयतोमा जीवादिक त्रण भांगा जाणवा. नोसंयत नोअसंयत अने नोसंयता % % %* 364 For Private and Personal Use Only
SR No.020107
Book TitleBhagvati Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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