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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः
॥४२८॥
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दिशाओथी सर्व प्रकारे पुद्गलोनो बंध थाय ? सर्वथी पुद्गलोनो चय थाय ? सर्वथी पुद्गलोनो उपचय थाय ? हमेशां निरंतर पुद्गलोनो बंध थाय, हमेशां निरंतर पुद्गलोनो चय थाय के हमेशां निरंतर पुद्गलोनो उपचय थाय ? अने तेनो आत्मा, हमेशां निरंतर दुरूपपणे, दुर्वर्णपणे, दुर्गंधपणे, दूरसपणे, दुःस्पर्शपणे, अनिष्टपणे, अकांतपणे, अमनोज्ञपणे, अमनामपणे-मनथी संभारी पण न शकाय ए स्थितिए, अनीप्सितपणे प्राप्त करवाने अनिच्छितपणे, अमिध्यितपणे जे स्थितिने प्राप्त करवानो लोभ पण न थाय ते स्थितिपणे, जघन्यपणे, अनूर्ध्वपणे, दुःखपणे अने असुखपणे वारंवार परिणमे छे ? [उ० ] हा. गौतम ! महाकर्मवाळा माटे तेज प्रमाणे छे. [प्र० ] हे भगवन ! ते शा हेतुथी ? [ उ ] हे गौतम! जेम कोइ अहत - अक्षत-अपरिभुक्त- नहि वापरेल- अधोतुं. धौत-धोतुं वापरीने पण धोएलुं अने शाळ उपरथी हमणां ताजुंज उतरेलुं वस्त्र होय, ते वस्त्र ज्यारे क्रमे क्रमे वपराशमां आवे त्यारे तेने सर्व बाजुएथी पुद्गलो बंधाय छे लागे छे, सर्व बाजुएथी पुद्गलोनो चय थाय छे यावत् कालान्तरे ते वस्त्र, मसोता जेवुं मेलं अने दुर्गंधी तरीके परिणमे छे, ते हेतुथी महाकर्मवाळाने उपर प्रमाणे कछे. [प्र० ] हे भगवन् ! ते नक्की छे के, अल्पआश्रयवाळाने अल्पकर्मवाळाने अल्पक्रियावाळाने अने अल्पवेदनावाळाने सर्वथी पुद्गलो भेदाय छे ? सर्वथी पुद्गलो छेदाय छे? सर्वथी पुद्गलो विध्वंस पामे छे? सर्वथी पुद्गलो समस्तपणे नाश पामे छे ? हमेशा निरंतर पुद्गलो भेदाय छे? सर्वथी पुद्गलो छेदाय छे ? विध्वंस पामे छे ! समस्तपणे नाश पामे छे ? अने तेनो आत्मा हमेशां निरंतर सुरूपपणे- पूर्वना सूत्रमां जे अप्रशस्त कछु हतुं, ते अहीं प्रशस्त जाणवुं यावत् सुखपणे, दुःखपणे नहि वारंवार परिणमे छे. [उ०] हा गौतम ! यावत् परिणमे छे ? [प्र० ] हे भगवन् ! ते शा हेतुथी ? [उ०] हे गौतम! जेम कोइ जल्लित जलवालुं मेलं, पंकसहित मेलसहित अने रजसहित वस्त्र होय, अने
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६ शतके
उद्देश: ३
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