SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥ ७१ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाव पभासेइ ॥ तं भंते! किं पुढं ओभासेड़ अपुढं ओभासेइ ?, जाव छद्दिसिं ओभासेति, एवं उज्जोबेइ तवे पभासेइ जाव नियमा छद्दिसिं ॥ से नूणं भंते! सव्वंति सव्वावंति फुसमाणकालसमयंसि जावतियं खेत्तं फुसइ तावतियं फुसमाणे पुढेत्ति बत्तव्वं सिया ?, हंता ! गोयमा ! सव्वंति जाब वक्तव्वं सिया ॥ तं भंते! किं पुई फुसइ अपुढं फसइ ? जाव नियमा छहिसिं ॥ ( सू० ५१ ) [H] हे भगवन्! अवकाशांतरथी- आकाशना व्यवधानथी (जेटले दूरथी ) उगतो सूर्य शीघ्र नजरे जोवाय छे तेटलाज दूरथी आश्रमतो सूर्य पण शीघ्र नजरे जोवाय के ? [उ०] हे गौतम! हा जेटले दूरथी जगतो सूर्य नजरे जोवाय छे तेटलाज दूरथी आथमतो सूर्य पण शीघ्र नजरे जोवाय . [प्र० ] हे भगवन् ! उगतो सूर्य पोताना तापद्वारा जेटला क्षेत्रने सर्व प्रकारे चारे बाजुथी बधी दिशाओमां अने बधा खुणामां प्रकाशित करे छे, उद्योतित करे छे, तपावे छे, अने खूब उष्ण करे छे, तेटलाज क्षेत्रने बधी दिशाओमां अने वधा खूणामांआथमतो सूर्य पण पोताना ताप द्वारा प्रकाशित करे छे ? उद्योतित करे छे ? तपावे के ? अने उष्ण करे छे! [उ०] हे गौतम! हा, उगतो सूर्य जेटला क्षेत्रने प्रकाशे छे तेटलाज क्षेत्रने आयमतो सूर्यपण यावत् उष्ण करे छे. [प्र० ] हे भगवन् ! सूर्य जे क्षेत्रने प्रकाशे छे? ते क्षेत्रथी सूर्यथी स्पर्शायेलुं छे ? के, अस्पर्शालुं छे ? [अ०] हे गौतम! ते क्षेत्र सूर्यथी स्पर्शायेलुं छे अने यावत् ते क्षेत्रने छए दिशामां प्रकाशित करे छे, उद्योतित करे छे, तपावे छे तथा अत्यंत तपावे छे छए दिशामां खूब तपावे छे ] [ प्र० ] हे भगवन् ! स्पर्श करवाना काळसमये सर्वाप-सूर्यना साथै संबंधवाळा जेटला क्षेत्रने सर्व दिशाओम सूर्य स्पर्शे छे, तेटलं ते स्पर्शातुं क्षेत्र 'स्पर्शायेलं' एम कद्देवाय ? [अ०] हे गौतम! हा सर्व यावत्-एम कहेवाय. [ प्र० ] हे भग For Private and Personal Use Only १ शतक उद्देश: ६ ॥ ७१ ॥
SR No.020106
Book TitleBhagvati Sutram Part 01
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy