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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२॥
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" अईम् ॥ श्रीमद्गणधरवरसुधर्मस्वामिप्रणीता। व्याख्याप्रज्ञप्तिः।
(श्रीभगवतीसूत्रम्)
१ शतके उद्देशः १
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(मूल सूत्र अने तेना गुजराती भाषान्तर सहित)
॥ भाग-१. ॥ सर्वज्ञमीश्वरमनन्तमसङ्गमम्य, सार्वीयमस्मरमनीशमनीहमिद्धम् ।
सिद्धं शिव शिवकरं करणव्यपेतं, श्रीमजिन जितरिपुं प्रयतः प्रणौमि ॥१॥ अर्थः-सर्वज्ञ, ईश्वर, अनंत, असंग, अग्र्य, सर्वहितावह, अस्मर, अनीश, अनीह, तेजस्वी, सिद्ध, शिव, शिवकर, करण-इन्द्रियो अने शरीररहित, जितरिपुने श्रीमान् जिनने यत्नापूर्वक प्रणाम करुं छ ।॥ १॥
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