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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ध्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥४४॥ रक् जीवा णं भंते ! कंखामोहणि कम्मं करिसु?, हंता करिसु। भैत! किं देसेणं देसं करिसु?, एएणं अभिलावेणं दंडओ भाणियन्बो जाव वेमाणियाणं, एवं करेंति, एत्थवि दंडओ जाव वेमाणियागं, एवं करेस्संति, १ शतके एस्थवि दंडओ जाव बेमाणियाण ॥ एवं चिए चिणिसु चिणति चिणिस्संति, उबचिए उवचिणि उवचिणिस्संति, उद्देशः ३ उदीरेंसु उदीरेंति उदीरिस्संति, वैदिसु वेदंति वेदिस्संति, निजरेंसु निजरेंति निजरिस्संति, गाहा-कडचिया 8 ॥४ ॥ है उवचिया उदीरिया वेदिया य निजिन्ना । आदितिए चउभेदा तियभेदा पच्छिमा तिन्नि ॥१७॥ (सू०२९) | [प्र०] हे भगवन् ! जीवोए कांक्षामोहनीय कर्म कर्यु ? [३०] हे गौतम! हा, क. [प्र०] हे भगवन् ! ते शुं देशथी देशे कयु || [उ.] हे गौतम ! सर्वथी सर्व कप छे. ए प्रमाणे यावत्-वैमानिको सुधी दंडक कहेवो. एज प्रमाणे करे छे अने करशे, ए बनेनो | अभिलाप पण यावत्-वैमानिको सुधी कहेवो. तया एज प्रमाणे चय, चय कर्यो, चय करे छे तथा चय करशे; उपचय, उपचय कों, उपचय करे ले, उपचय करशे. उदीयं, उदीरे छे, उदीरशे, वेधू, वेदे छे, वेदशे, निर्जयु निर्जरे छे, अने निजरशे; ए बधा अभि| लापो कहेवा. गाथा-कृत, चित अने उपचितमा एक एकना चार मेद कहेवाना छे अर्थात् सामान्यक्रिया, पछी भूतकाळनी तथा भविष्यकाळनी क्रिया; अने पाछळना त्रण पदमां-उदीरित, वेदित, अने निजिर्णमा एक एक पदमा मात्र त्रण काळनीज किया कहेवानी छे. ॥२९॥ ___ 'जीवा णं भंते! कंखामोहणिजे कम्मं वेदेति ?, हंता वेदेति । कहनं भंते! जीवा कंखामोहणिजं कम्म वेदेति ?, गोयमा! तेहिं तेहि कारणेहि संकिया कंखिया वितिगिछिया भेयसमावन्ना कलुससमावन्ना, एवं ECCCCCCCCC For Private and Personal Use Only
SR No.020106
Book TitleBhagvati Sutram Part 01
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size8 MB
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