SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्याप्रज्ञप्तिः 11 2011 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विनाना छे. जे सरागसंयत छे तेओ मे प्रकारना कया के, ते आ प्रमाणेः प्रमत्तसंयत अने अप्रमतसंयत तेमां जे अप्रमत्तसंयत के तेओने एक मायाप्रत्यया क्रिया होय छे। अने जेओ प्रमत्तसंयत छे तेओने बे क्रियाओ होय छे:- आरंभिकी अने मायाप्रत्यया. तेमां जे संयतासंयत छे तेओने प्रथमनी त्रण क्रियाओ कही छे, ते आ प्रमाणेः- आरंभिकी, पारिग्राहिकी अने मायाप्रत्यया. तथा असंयतोने चार क्रियाओ होय छे. आरंभिकी, पारिग्राहिकी, मायाप्रत्यया अने अप्रत्यख्यानप्रत्यया. मिथ्यादृष्टिओने तथा सम्यग्मिध्यादृष्टिओने पांच क्रियाओ होय छे ते आ प्रमाणेः- आरंभिकी, परिग्रहिकी, मायाप्रत्यया, अप्रत्याख्यानप्रत्यया अने मिथ्यादर्शनप्रत्यया. वानव्यंतर, ज्योतिषिक अने वैमानिक, ए बधा असुरकुमारोनी पेठे कहेवा. वेदनामां भेद छे, जे आ प्रमाणे छे ज्योतिष्क अने वैमानिकोमा जे मायी मिध्यादृष्टि उत्पन्न थरला होय ते ओछी वेदनावाळा होय छे अने जे अमायी सम्यग्दृष्टि उत्पन्न थएला होय ते मोटी वेदनावाला होय छे एम कहे. [प्र०] हे भगवान् ! लेश्यावाळा बघा नैरयिको समान आहारवाळा छे ? [अ०] हे गौतम! औधिक - सामान्य, सलेश्य अने शुक्ललेश्यावाळा ए त्रणेनो एक गम कहेवो. कृष्णलेश्यावाळा अने नीलले श्यावाळाओनो पण समान गम कहेवो. पण तेमां वेदनामां भेद आ प्रमाणे छे-मायी अने मिध्यादृष्टी उपपत्रक अने अमायी तथा सम्यग्दृष्टि उपपन्नक कहेवा. तथा कृष्ण अने नीललेश्यामां मनुष्यो सरागसंयत, वीतरागसंयत, प्रमत्तसंयत के अप्रमत्तसंयत न कहेवा. वळी कापोतवेश्यावाळामां पण एज गम समजवो. विशेष ए के कापोतले श्यावाळा नैरयिको औधिकदंडनी पेठे कहेवा. जेओने तेजोलेश्या अने पद्मलेश्या होय, तेओ औधिकदंडनी पेठे कहेवा विशेष ए के, मनुष्योना सराग अने वीतराग एवा वे भेद कहेवा. गाथा -कर्म-अने आयुष्य जो उदीर्ण होय तो वेदे छे. आहार, कर्म, वर्ण, लेश्या, वेदना, क्रिया, अने आयुष्य, ए बधानी For Private and Personal Use Only ९ शतके उद्देशः २ ॥ ३७ ॥
SR No.020106
Book TitleBhagvati Sutram Part 01
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy