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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रतिः ॥३१२॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जंबुद्दीवे २ मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं जाई इमाई समुप्पचंति, संजहा- अतिवासाति वा मंदवासाति वा सुबुद्धीति वा दुष्बुट्टीति वा उदब्मेयाति वा उदप्पीलाइ वा उदवाहाति वा पव्वाहाति वा गामवाहाति वा बा जाव सन्निवेसवाहाति वा पाणक्खया जाव सेसि वा वरुणकाइयाणं देवाणं समस्त णं देबिंदस्स देवरन्नो वरुणस्स महारनो जाब अहावचाभिन्नाया होत्या, तंजहा कक्कोडए कश्मए अंजणे संखवालए पुंडे पलासे मोएजए दहिमुहे अयंपुले कायरिए । सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो वरुणस्स महारण्णो देवणाई दो पलिओ माई ठिती पण्णत्ता, अहावचाभिन्नायाणं देवाणं एवं पलिओवमं ठिती पण्णत्ता, एवंमहिड्दीए जाब वरुणे महाराया ३ । (सू० १६६) [प्र०] हे भगवन् ! देवेंद्र, देवराज शक्रना वरुण महाराजानुं स्वयंज्वल नामनुं महाविमान क्यां आन्युं क छे [उ०] हे गौतम ! सौधर्मावतंसक विमाननी पश्चिमे सौधर्मकल्प के, त्यांथी असंख्येय हजार योजन मूक्या पछी - अहीं वरुण महाराजानुं स्वयंज्वल नामनुं महाविमान आवे छे. आ संबंधीनो सर्व वृत्तांत सोम महाराजानी पेठे जाणवो. तेमज विमान, राजधानी, अने यावत्प्रासादावतंसको संबंधे पण एज रीते समजनुं विशेष ए के, नामनो मेद जाणवो, देवेंद्र, देवराज शक्रना वरुण महाराजानी आज्ञामां यावत् आ देवो रहे छे:- वरुणकायिको, वरुणदेवकायिको, नागकुमारो, नागकुमारीओ, उदधिकुमारो, उदधिकुमारीओ, स्तनितकुमारो, स्तनितकुमारीओ अने बीजा पण मधा तेवा प्रकारना देवो तेनी भक्तिवाळा यावत् रहे छे. जंबूद्वीप नामना द्वीपमां मंदर पर्वतनी दक्षिणे जे आ उत्पन्न थाय छे:- अइवास = अतिवृष्टि, मंदवासा=मंददृष्टि, सुबुद्धी इ वा सृष्टि, दुबुद्धी दुर्दृष्टि, उदन्भेदा = पहाळनी For Private and Personal Use Only ३ शतके उद्देशः७ ॥३९२॥
SR No.020106
Book TitleBhagvati Sutram Part 01
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size8 MB
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