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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥२८५|| + ३ शतके उद्देशः४ ॥२८॥ 9 [उ०] हे गौतम ! कोड तो देवने जूए पण यानने न जूए, कोई यानने जूए पण देवने न जूए. कोई देव अने यान, ए बनेने जूए अने कोइ तो देव अने यान, ए मांथी कोई वस्तुने न जूए. [प्र०] हे भगवन् ! मावितात्मा अनगार, बैंक्रिय समुद्घातथी समवहत थएली अने यामरूप गति करती एवा देवीवाला देवने जाणे, जूए ? [उ.] हे गौतम ! कोई तो देवीवाळा देवने जूए, | पण यानने न जूए. ए अभिलापथी अहीं पूर्व प्रमाणे चार भांगा करी ठेवा. [H०] हे भगवन् ! भावितात्मा अनगार, शुं शाडना अंदरना भागने जूए के पहारना भागने जूए । [उ०] हे गौतम ! अहीं पण चार मांगा कहेवा. एज रीने शुं मूळने जूए छे! कांदाने जूए छे ? हे गौतम ! पूर्व प्रमाणे चार भांगा करवा. मूळने जूए छे ? कांदाने जूए छे ? पूर्व प्रमाणे चार भांगा करवा. अने एज प्रमाणे मूळनी साथे चीजनो संयोग करवो, ए रीते कंदनी साथे पण जोडवू यावत्-धीज. ए प्रमाणे पुष्पनी साथे पीजनो संयोग करवो. [म.] हे भगवन् ! भावितात्मा अनगार, शु वृक्षतुं फळ जूए के बीज जूए! [उ.] हे गौतम ! अहीं चार भांगा करवा. ॥ १५५॥ पभूर्ण भंते ! बाउकाए एगं महं इत्थिरूवं वा पुरिसरूवं वा हत्थिरूवं वा जाणरूवं वा एवं जुग्गगिल्लिथिल्लिसीयसंदमाणियरूवं वा बिउब्बित्तए?, गोयमा! णो तिणो समझे, वाउकाएणं विकुब्वमाणे गगं महं पडागासंठियं रूवं विकुब्वइ । पभूर्ण भंते ! वाउकाए एग महं पडागासंठियं रूवं विउब्वित्ता अणेगाई जोयणाई गमित्तए, हंता! पभू । से भंते ! किं आयड्डीए गरछह परिड्डीए गच्छह !, गोयमा ! आयड्ढीए गणोपरिदीए ग०, जहा आयड्ढीए एवं चेव आपकम्मुणावि आयप्पओगेणवि भाणियन्वं । से भंते ! किं ऊसिओदगं गच्छा %rwari For Private and Personal Use Only
SR No.020106
Book TitleBhagvati Sutram Part 01
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size8 MB
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