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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥२४८ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गया है, जाय छे, अने जशे पण खरा. [प्र० ] हे भगवन् ! ते असुरकुमारो नंदीश्वरद्वीप सुधी जाय छे, गया के अने जशे तेनुं शुं कारण ? [अ०] हे गौतम! जे आ अरिहंत भगवंत छे, एओना जन्मोत्सवमां दीक्षा- उत्सवमां, ज्ञानोत्पतिमहोत्सवमां अने परिनिर्वाणना उत्सवमां ए असुरकुमार देवो नंदीश्वरद्वीप सुधी जाय छे, गया छे अने जशे अरहंतना जन्म वगेरेना उत्सवो असुरकुमार देवोने नंदीश्वरद्वीप जवानुं कारण छे [प्र० ] हे भगवन् ! ते असुरकुमारोमां एवं सामर्थ्य छे के तेओ, पोताना स्थानथी उंचे जह शके ? [अ०] गौतम ! हा, जइ शके छे. [प्र० ] हे भगवन् ! ते असुरकुमारो पोताना स्थानथी केदला भाग सुधी उंचे जइ शके छे? [ उ० ] हे गौतम ! अच्युतकल्पसुधी उपर जइ शके छे, परंतु तेओ गया नथी जशे नहिं अने जाता पण नयी. परंतु सौधर्मकल्प सुधी जाय छे. गया के अने जशे पण खरा. किं पत्तियण्णं भंते! असुरकुमारा देवा सोहम्मं कप्पं गया य गमिस्संति य १, गोयमा ! तेसि णं देवाणं भवपचइयवेराणुबंधे, ते णं देवा विकुब्वैमाणा परियारेमाणा वा आयरक्खे देवे वित्तासेंति, आहालहस्सगाई रयणाई गहाय आयाए एगंतमंत अवकामति । अस्थि णं भंते! तेसिं देवाणं आहालहुस्सगाई रयणाई, हंता अस्थि । से कहमियाणि पकरेंति ?, तओ से पच्छा कार्य पत्रवहंति । पभू णं भंते ! ते असुरकुमा देवा तत्थ गया वेव समाणा ताहि अच्छराहिं सद्धिं दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणा विहरितए ?, णो तिट्टे समट्टे, ते णं तओ पडिनियत्तति २ त्ता इहमागच्छति २ जति णं ताओ अच्छराओ आढायंति परियाणंति० । पभूपणं भंते । ते असुरकुमारा देवा ताहिं अच्छराहिं सद्धि दिव्वाई भोग भोगाई भुंजमाणा बिहरित्तए अहन्न For Private and Personal Use Only ३ शतके उद्देशः २ ||२४८||
SR No.020106
Book TitleBhagvati Sutram Part 01
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size8 MB
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