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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥२४४॥ ३ शतके उदेशः१ ॥२४॥ %CK कर छे. सुखेच्छु छे, पथ्येच्छु छे, तेओना उपर अनुकंपा करनार छे, तेओर्नु निःश्रेयस इच्छनार छे तथा तेओना हितनो, सुखनो अने निःश्रेयसनो अर्थात् ए बधानो इच्छुक छे, माटे हे गौतम! ते सनत्कुमार इंद्र भवसिद्धक छे यावत्-ते चरम छे, पण अचरम नथी. [प्र.] हे भगवन् ! देवेंद्र, देवराज सनत्कुमारनी स्थिति केटला काळ सुधीनी कही छे ? [उ०] हे गौतम! तेनी स्थिति सात सागरोपमनी कही छे प्र०] हे भगवन् ! तेनी आवरदा पूरी थया पछी ते, देवलोकथी च्यवी यावत्-क्यां उत्पन्न यशे? [उ.] हे गौतम ! ते महाविदेहक्षेत्रमा सिद्ध थशे, यावत्-तेनां सर्व दुःखनो नाश करशे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे. गाथार्थ:-तिष्यक श्रमणनो तप छट्ट अने एक मासर्नु अनशन छे. कुरुदत्त श्रमानो तप अट्ठम अने अडधा मासर्नु अनशन छे. तिष्यक श्रमणनो | साधु पर्याय आठ वर्षनो अने कुरुदत्त श्रमणनो साधु पर्याय छ मामनो छे अर्थात् ए वे श्रमणोने लगती बीना आ उद्देशकमां आवी छे, बीजी विगत-विमानोनी उंचाइ, इंद्रन इंदनी पासे जवू, जोधू, संलाप, कार्य, विवादनी उत्पति, तेनो निवेडो अने सनत्कुमारमा | भव्यपणु, ए बीनाओ पण आ उद्देशकमां कही छे. मोया सम्मत्त-मोका समाप्त (आ बीना मोका नगरीमां कहेवाएली होवाथी चालु उद्देशकनुं नाम पण मोका राख्युं छे) ।। १४० ॥ भगवन् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद्भगवतीसूत्रमा त्रीजा शतकमा प्रथम उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. For Private and Personal Use Only
SR No.020106
Book TitleBhagvati Sutram Part 01
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size8 MB
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