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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३ शतके व्याख्याप्रज्ञप्तिः उमेशः१ ॥२२४॥ ॥२२४।। XXX हती. (वर्णक) ते ताम्रलिप्ती नगरीमा तामली नामनो मौर्यपुत्र (मौर्यवंशमां थयेलो) गृहपति रहेतो हतो. ते तामलीगृहपति धनाव्य अने दीप्तिवालो हतो, तथा यावत्-घणा माणसोथी ते चढीयातो हतो अर्थात् कोइपण मनुष्य तेनी बरोबरी करी शके तेम न इता. हवे एक दिवसे ते मौर्यपुत्र तामली गृहपतिने रात्रीना आगळना अने पाछळना भागमा अर्थात् रात्रिना मधभागमा कुटुंबनी चिंता करता एका प्रकारनो संकल्प उत्पन्न थयो के पूर्व करेला जूनां सारी रीते आचरेलां, सुपराक्रमयुक, शुभ अने कल्याणरूप या मारा कर्मोने कल्याणफळरूप प्रभाव हजु सुधी जागतो छ के जेथी मारा गृहने विषे हिरण्य बघे बे, सुवर्ग बधे छे, धन वधे छे, धान्यो वधे डे, पुत्रो वधे के, पशुओ वधे छे, अने पुष्कळ धन, कनक, रन, मणि, मोती, शंख, चंद्रकांत बगेरे पत्थर, प्रवाळां, तया माणेकरूप सारवाळु धन मारे घरे घणु घणु वधे छे. तो शुं हुं पूर्वे करेलां, मारी गो आचरेला, यावत्-जूनां कर्मोनो तद्दन नाश थाय तो जोइ रहुं-ते नाशनी उपेक्षा करतो रहुं, अर्थात् मने आटलं सुख वगेरे ले एटले बस छे एम मानी भाविलाभ तरफ उदासीन रहुं ! पण ज्यांसुधी हिरण्यथी वृद्धि पाएं छु, अने मारे घरे घY घणुं वधे छे, तथा ज्यांसुधी मारा मित्रो, मारी नात, मारा पित्राइओ, मारा मोसाळिआ के मारा सासरीआ अने मारो नोकरवर्ग मारो आदर करे हे, मने स्वामी तरीके जाणे हे, मारो सत्कार करे छे, मारु सन्मान करे छे अने मने कल्याणरूप, मंगलरूप अने देवरूप जाणी चैत्यनी पेठे विनयपूर्वक मारी सेवा करे छे त्यांसुधी मारे मारु कल्याण करी लेवानी जरूर छे, अर्थात् आवती काले प्रकाशवाळी रात्री यया पछी-सूर्य उग्या पछी मारे मारी पोतानीज मेळे लाकडानुं पात्र करी, पुष्कळ खानपान मेवा मिष्टान अने मशाला विगेरे तैयार करावी, मारा मित्र, नात, पित्राइ, मोसाळिआ के सासरीआ अने मारा नोकरचाकरने नोतरी, ते मित्र, नात, पित्राइ, मोसाळिआ के सासरिआ तथा नोकरचाकरने For Private and Personal Use Only
SR No.020106
Book TitleBhagvati Sutram Part 01
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size8 MB
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