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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रज्ञप्ति ॥२१२॥ ३ शतके जोशः१ ॥२१॥ जाब तिरिय संखेज्जे दीवसमुहे बहहिं मागकुमारीहिं जाव विउविस्संति वा, मामाणिया तायत्तीसा लोगपालगा अग्गमहिसीओय तहेव, जहा चमरस्स एवं धरणेणं नागकुमारराया महिड्ढिए जाव एवंतियं जहा चमरे तहा धरणेऽवि, नवरं संखजे दीवसमुद्दे भाणियब्वे, एवं जाव थणियकुमारा वाण मंतरा जोइसियावि, नवरं दाहिणिल्ले सब्वे अग्गिभूती पुच्छति, उत्तरिल्ले सव्वे वाउभूती पुच्छइ, हा पछी ते त्रीजा गौतम अग्निभूति अनगार श्रमणभगवंतमहावीरने वांदे छे, नमे छे, नमीने तेओ आ प्रमाणे बोल्या के:-हे भग वन् ! जो वैरोचन इंद्र, वैरोचनराजबलि एवी मोटी ऋद्धिवाव्ये छे अने यावत् ते केटलं विकृर्वण करी शके छ ? [उ.] हे गौतम ! ते नागकुमारोनो इंद्र, नागकुमारोनो राजा धरण मोटी ऋद्धिबाळो छे, अने यावत्-त्या ४४ लाख भवनवासो छे, छ हजार सामा. |निक देवो उपर, तेत्रीश त्रायविंशक देवो उपर, चार लोकपालो उपर, परीवारवाळी छ पट्टराणीओ उपर स्वामीपणुं भोगवतो विहरे २. तथा तेनी विकुर्वण शक्ति आटली छे-जेम कोइ जुवान पुरूष जुवान स्वीना हाथने पकडे, अने परस्पर काकडा वाळेल होबाथी | जेम ते संलग्न जणाय 2 सेम घणा नागकुमार अने धणी नागकुमारीओवडे-आखा जंबूद्वीपनो अने तिरछे संख्येय द्वीपसमृद्रोने भरी शके छः पण यावत्-ते तेवु कोइ दिवस करशे नहि. तेना सामानिको, त्रायविंशक देवो, लोकपालो, अन अग्र महिपीओ विषे | | चमरनी माफक कहे. विशेष ए केः-तेओनी विकुर्वणशक्ति माटे संख्येय द्वीप समुद्रो कहेवा. अने ए प्रमाणे यावत्-स्तनितकुमारो, | वानभ्यंतरो, तथा ज्योतिषिको पण जाणवा. विशेष ए के-दक्षिण दिशाना बधा इन्द्रो विषे अग्निभूति पूछे छे अने उत्तर दिशाना | बधा इंद्रो विषे वायुभूति पूछे छे. + For Private and Personal Use Only
SR No.020106
Book TitleBhagvati Sutram Part 01
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size8 MB
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