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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २शतके उद्देशः१ ॥१३५॥ परिव्राजकने तु आजज जोइक, 'पछी हे भगवन् ! एम कही भगवन् गौतमे श्रमण भगवंत महावीरने बांदी, नमी, आ प्रमाणे प्रशतिः क के:-हे भगवन् ! ते कात्यायनगोत्रीय स्कंदक परिव्राजक आप देवानुनियनी पासे मुंड थइने, अगार तजीने अणगारपणु लेवाने ॥१३॥ शक्त छ ?.हे गौतम! हा, ते स्कंदक परिव्राजक मारी पासे अनगार यवा शक्त छे. ज्यारे श्रमण भगवंत महावीर, भगवान् गौतमने पूर्व प्रमाणेनी बात कहता हता तेवामांज ते कात्यायनमोत्रीयस्कंडक परिव्राजक ते ठेकाणे श्रीमहावीर पासे तुरत आव्या. ॥४॥ तए णं भगवं गोयमे खंदर्य कच्चायणस्सगोत्ते अदूरआगयं जाणित्ता विप्पामेव अब्भुळंति खिप्पामेव पचुवगच्छह २ जेणेव खंदए कच्चायणस्सगोत्ते तेणेव उवागग्छइ २त्ता खंदयं कच्चायणस्सगोत्तं एवं बयासी-हे खंदया सागर्य खंदया! सुसागयं खंदया! अणुरागयं खंदया ! सागयमणुरागयं खंदया! से नूणं तुम खंदया! सावत्थीए नपरीए पिंगलएण नियंठेणं वेसालियसावएणं इणमक्खवं पुच्छिए-मागहा! किं सअंते लोगे अणंते लोगे? एवं तं चेव जेणेव इहं तेणेब हब्वमागए, से नूर्ण खंदया! अष्टे समढे ?, हंता अत्थि, तए णं से खंदए | कच्चा भगवं गोयम एवं वयासी-से केणटेणं गोयमा ! तहारूवे नाणी वा तवस्सी वा जेणं तव एस अहे मम दताव रहस्सकडे हन्यमक्रवाए जओ णं तुम जाणसि, तए णं से भगवं गोयमे खंदयं कच्चायणस्सगोत्तं एवं वयासी-एवं खलु खंदया! मम धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे उप्पण्णणाणदसणधरे अरहा जिणे केवली तीयपच्चुप्पन्नमणागयवियाणए सम्वन्नू सव्वदरिसी जेणं मम एस अड्डे तव ताव रहस्सकडे हब्वमक्खाए, जओ णं अहं जाणामि खंदया, तए णं से खंदए कच्चायणस्सगोत्ते भगवं गोयम एवं वयासी-- ॥५॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020106
Book TitleBhagvati Sutram Part 01
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size8 MB
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