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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ዘረበ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंति य २, अणाहारिया आहारिजिस्समाणा पोग्गला नो परिणया परिणमिस्संति ३, अणाहारिया अणाहारिजिस्समाणा पोग्गला नो परिणता णो परिणमिस्संति ॥ ४ ॥ (सू० ११) (प्र०) हे भगवन् ! नैरयिकोए पूर्वे आहारेला पुद्गलो परिणामने पाम्यां (१) ? आहरेला तथा आहराता पुनलो परिणामने पाम्यां (२) १ जे पुद्गलो अनाहारित नहीं आहरेला छे ते तथा आहराशे ते परिणामने पाम्यां (३) १ के जे पुद्गलो नहीं आहरेला छे ते तथा नहीं आहराशे ते परिणामने पाम्यां (४) १ ( उ०) हे गौतम! नैरकोए पूर्वे आहरेला पुद्गलो परिणामने पाम्यां (१) आहरेला पुद्गलो परिणामने पाम्यां अने आहरातां पुद्गलो परिणामने पामे छे. (२) नहीं आहरेला पुद्गलो परिणामने पाम्यां नथी अने जे पुछलो आहरशे ते परिणामने पामशे. (३) तथा नहीं आहरेला पुद्गलो परिणामने पाम्यां नथी. अने जे पुद्गलो नहीं आहराशे ते परिणामने पामशे नहीं (४) ॥ ११ ॥ desert भंते ! पुत्र्वाहारिया पोग्गला चिया पुच्छा, जहा परिणया तहा चियावि, एवं चिया उबचिया | उदीरिया बेइया निजिन्ना, गाहा—परिणय चिया उवचिय उदीरिया वेश्या य निजिन्ना । एक्केमि पदंमि (मी) चडब्बा पोग्ला होति ॥ ३ ॥ (सू० १२) अर्थः- (प्र०) हे भगवन् ! नैरयिकोए पूर्व आहरेला पुद्गलो चयने पाम्यां ? (उ०) हे गौतम! जेवीरीते परिणामने पाम्यां ए प्रमाणे उपचयने पाम्यां उदीरणाने पाम्यां वेदनने पाम्यां तथा निर्जराने पाम्यां गाथार्थः- परिणतचित, उपचित, उदीरित वेदित, अने निजॉर्ज ए एक एक पदमां चार प्रकारना पुद्गलो थाय छे. (मू० १२) For Private and Personal Use Only १ शतके उद्देशः १ ||८||
SR No.020106
Book TitleBhagvati Sutram Part 01
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size8 MB
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