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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir केसरियछन्त्रालयअंकुसयपवित्तयगणेत्तियहत्थगए छत्तोवाहणसंजुत्ते धाउरत्तवत्थपरिहिए सावत्थीए मगरीए व्याख्या- मझमझेणं निगरछह निगच्छइत्ता जेणेव कयंगला नगरी जेणेव छत्तपलासए चेहए जेणेव समणे भगवं२ शतके प्रज्ञप्तिः महावीरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए। ॥३॥ उद्देशः१ ॥१३३॥ ा त्या अनेक मनुष्योना मुखथी श्रीमहावीरप्रभु आव्यानी वात सांभळी कात्यायनगोत्री स्कंदक तापसना मनमा पोताना विपे ॥१३॥ ताम्मरणरूप अने अमिलाषरूप आ प्रकारनो विचार थयो के, श्रमण भगवंत महावीर कृतंगला मगरीनी बहार छत्रपलासक नामना मा चैत्यमा संयम अने तपवडे आत्माने भावता विहरे छे. माटे हुं तेनी पासे जाउं, श्रमण भगवंत महावीरने पाएं, नमस्कार करूं,। 15 अने श्रमण भगवंत महावीरने बांदीने नमीने, तेओनो सत्कार करीने तथा तेओने सन्मान आपीने अने कल्याणरूप, मंगलरूप, ना देवरूप, अन चैत्यरूप श्रीमहावीरनी पर्युपासना करीने आ ए प्रकारना अर्थाने, हेतुओने प्रश्नोने कारणोने, व्याकरणोने पूछु तो मारुं कल्याण छ. ए नकी छे. ए पूर्व प्रमाणे स्कंदक तापसे विचारीने, ज्यां परिव्राजकोनो मठ छे त्यां जइने त्यांथी त्रिदंड, कुंडी, रुद्राक्षनी माळा, करोटिका माटीनुं वासण, बेसवार्नु आसन, वासण लूछवानो कपडानो टुकडो, त्रिगडी, अंकुशक, बीरी, गणेत्रिका, छत्र, पगरखां, पावडी, भगवा रंगेला वस्रोने लइने नीकळे के. नीकळी त्रिदंड, कुंडी, रुद्राक्षनी माळा, करोटिका, वेसणु, केसरिका, | त्रिगडी, अंकुशक, वींटी, घरेणु, ए बधी वस्तुओने, हाथमा राखी, छत्र ओढी, पगरखां पहेरी, तथा भगवा वस्त्रोने शरीर उपर पहेरी से स्कंदक तापस श्रावस्ती नगैरीना मध्यभागमाथी नीकळे हे, नीकळी जे तरफ कृतंगला नगरी छे, जे तरफ छत्रपलाशक द्र चैत्य छ, अने जे तरफ श्रमण भगवंत महावीर छे ते तरफ जवानो ते वापसे संकल्प कयों. ॥३॥ ROSCROSSASSASAALS For Private and Personal use only
SR No.020106
Book TitleBhagvati Sutram Part 01
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size8 MB
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