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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अगास्तया अगस्तिया उस दधि से निकाले हुए नवनीत से वातरक्रजन्य शरीरस्थ स्फोट (कांटे) अच्छे होते हैं । (म. खं०२ य.भा.)। हागेत-(.) अपस्मार पर अगस्तिया के पत्र-अगस्तिया पत्र बहुत मरिच थोड़ी इनको गोमूत्र में भली प्रकार बारीक पीसकर अपस्मार रोगी को नस्य कराएँ । (चि. १६ श्र०) (२) वालापस्मार-में अगस्तिया के पत्ते के रस के साथ मरिच योजित कर नस्य देने से लाभ होता है। उक्त रस में रुई का फाया भिगोकर उसे बालक के नासारंध्र के पास स्थापित करना अच्छा है। (चि.४३) अगस्तक सम्बन्धम युनानो व डाक्टरी मतयुनानी ग्रन्धकार अगस्तिया को दूसरी कक्षा में शीतल और रूक्ष नानते हैं। फारमीदव्य गुण. शास्त्र के प्रसिद्ध लेखक मोर मुहम्मद हुसेन लिखते हैं कि सरकमाँ अथवा मस्तक दुन्वना हो तो इसके पत्तों का रस निकाल नाकमै ३ बुद टपकाएं तो छींक पाकर नासिका द्वारा जलस्ताव होकर मस्तक का भारीपन दूर हो जाएगा। बम्बई के निवासी इसके पत्ते और पुप्प के निचोड़े हा रस का प्रतिश्याय एवं मस्तक शुल में नस्य रूप से उपयोग करते हैं। इससे नासिका द्वारा अत्यन्त जलस्राव होता है तथा शिर की वेदना एवं भारीपन सर्वथा दूर होता है। वि०, डाइमॉक। फल का साग करके खाते हैं। छाल पाचन शकि बढ़ाने में दी जाती है। पत्तों को गरम जल में भिगोकर उस जल को पीने से जल्लाय लगता है। आँख में जाला पड़ गया हो तो अगस्तिया के फल का रस आँख में डालने से फायदा होना है। म० अ०। यह उष्ण तथा पित्त हारक है। इसका पुष्प पित्तनाशक घ्राणशक्रिकी बलप्रद और नक्रांध्य अर्थात् रतौंधे को दूर करता है। अगस्तिया का मूल कफ निःसारक, त्वक् कपाय, तित्र, बलकारक, पत्र तथा पुष्प के रस की नस्य, देने से पीनस, प्रनिश्याय और शिरोवेदना कम होती है। मूल रस मधु के साथ तरुण कफ रोगमें प्रयोजनीय है । अगस्तिया तथा धतूरा को जड़ समान भाग लेकर पीस कर वेदना युक्र शोथ स्थल पर प्रलेप करे। (मे० मे०ई० श्रार० एन० ग्वारी कृत २ या खंड २२६-ई. पृ०)। लाल फल वाले अगस्तिए की जड़ को जल के साथ पीसकर बनाई हुई लुगदी का संधिवात में उपयोग होता है। इसे २ तो० तक इसकी जड़का रस प्रतिश्याय में मधुके साथ उपयोग में लानेसे श्लेप्ना निम्मारक प्रभाव करता है। एक भाग अगम्किए की जड़ तथा इतनी ही धतूरं की जड़, इन दोनों में तैयार की हुई लुगदी को वेदना युद्ध शोथ में वर्तते हैं। इसके पत्ते को माभेदक बत लाते हैं। वि. डाइमॉक । चेचक की प्रथमावस्था नथा अन्य म्फोटकीय ज्वरों में इसकी बचा के शीत कपाय का लाभदायक उपयोग होता है। टो० गन मुकर्जी. डॉक्टर बोनेविया ( Dr. Bonavia) के कथनानुसार इसकी छाल अत्यन्त संकोचक है। और ब इसका बलकारक रूप से उपयोग में लाने की शिफारिश करते हैं। डॉक्टर गम्फिस (Dr. RImphius) के वर्णनानुसार इसके पत्ते की पुलटिश चोट लगने अथवा कुचल जाने के लिए एक प्रसिद्ध ग्रीषधि है। पहज काम अथवा बच्चों की मर्दी में दो बूद अगस्त के पत्ते के रस को - या १० बूद शहद में मिलाकर इसे अंगुली के सिर पर लगा शिशु के ब्रह्मरंध्र पर दाई लोग चतरना पूर्वक लगाती हैं। (इं. मे० मे.) इसके पुष्य को निचोड़ कर निकाले हुए रम को चक्षुश्री में डालने से दृष्टिमांद्य अथवा धुध को लाभ होता है। ___ अगस्त की ताजी छाल को कूटकर इसका रस निचोड़ कपड़े की वर्तिका इसमें नर कर योनि में रग्बने से श्वेतप्रदर तथा योनि कण्डु का नाश होता है । ( लेग्वक) For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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