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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अगर- अगर www.kobatirth.org तथा स्वाद एवं गंध रहित होते हैं । शीतल जल से स्पर्श होने पर इनका द्रव्यमान बढ़ जाता है। तथा वे चतुष्कोणी स्पञ्जवत् होजाते हैं और उनकी भुजाएँ नतोदर तथा चौड़ाई में १॥ इंच होती हैं। यद्यपि जल में यह किसी परिणाम में विलेय होता है तथापि कुछ काल पर्यन्त उबालने पर इसका अधिक भाग लय हो जाता है और घोल, जब कि अभी यह जल निति ( या पतला ) है, शीतल होने पर सरेश में परिणत हो जाता है । चीन देशीय यूरूप निवासी इसे वास्तविक सिरेशम माही ( Isinglass ) की प्रतिनिधि स्वरुप व्यवहार में लाते हैं जो कि बहुराः उससे भी गुणदायक है | यह बहुत जल में मिलकर भी उसे सरेश में परिवर्तित कर देता है । उसका यह गुण एम० पेन (M. payon) द्वारा श्रभि हित जेलोज़ ( Gelose ) नामक पदार्थ के कारण है जो जापानीय शैवाल में विशेष रूप से पाया जाता है । यह सिरेराम माही की अपेक्षा अधिक उत्ताप पर पिघलता है । यह अपने से ३०० गुने जल में भी घुल कर शीतल होने पर सरेश में परिणत हो जाता है। I (४) एक ही वजन में इससे सिरेराम माही से १० गुना अधिक सरेश तैयार होता है । श्राहार हेतु ar सरेश ( अगर अगर ) प्राणिज सरेश से अधिक प्रिय नहीं होता, क्योंकि यह ( चेश्रो ) मुख में नघुल होता है और उसमें नत्रजन भी प्रभाव होता हैं । उसमें सर्वोपरि गुण यह है कि वह अति न्यून परिवर्तनशील होता है, अस्तु, उपयोग हेतु प्रस्तुत, स्वादिष्ट एवं मधुरीकृत 'सी वीड जेली' ( समुद्र शैवाल सरेश ) नाम से कभी कभी सिंगापूर से आया हुआ सरेरा विना विकृत हुए उसी रूप में वर्षो रक्खा रह सकता है । ४७ अधुना विशेषतया उष्ण जल वायु में जीवाणु शास्त्रान्वेषणार्थ व जीवाणु उत्पादन वर्द्धन हेतु यह अधिक उपयोग में लाया जाता है । (डाइमांक) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसायनिक संगठन — उक्त सिवार से प्राप्त सरेश में जेलोज ( gelose ) जो सरेशी सत्व है प्राप्त होता है। इसमें कोई नत्रजन वायव्य नहीं होता तथा शर्करा पदार्थ ( mannite ), निशास्ता तथा लव्युमेन वर्तमान होते हैं । अगरता प्रभाव तथा उपयोग-उन छिद्र श्रादिकों को, जिनसे कभी श्रान्त्र वृषण में उतर आती है, संकुचित (छोटा) करने के विचार से अगरअगर के कीट रहित घोल का तत्स्थानीय तन्तुओं में अन्तः क्षेप करते हैं । मृदुभेदक रूप से इसका प्रायः सफलता पूर्ण उपयोग किया गया 1 अगर अगर द्वारा निर्मित रिग्यूलीन ( Regulin ) नामक एक शुष्क एवं स्वाद रहित श्रौषध जिसमें २० प्रतिशत कैस्करा सत्व ( Extract of cascara ) होता है प्रचार पर चुकी है । १ से ३ ड्राम की मात्रा में पुरातन मलावरोध में यह मृदु भेदक प्रभाव करता तथा मल परिमाण की वृद्धि करता है | कुचले हुए आलू व उबाले हुए फलों के साथ मिलाकर इसका उपयोग करना चाहिए | अगर अगर के शुष्क बारीक पत्र चाय की चम्मच भर की मात्रा में कैस्करा के विना मरोड़ एवं रेचन के उत्तम परिणाम उत्पन्न करते हैं | अगर के प्रभाव को श्रान्त्रीय पृष्टों तक ही निर्मित रखने की दृष्टि से इसके साथ बहुत सी अन्य औषधियां जैसे फिनोल - थैलीन ( Phenol-phathalein ) रूब ( रेवन्द), टैनीन (कपायीन), कैटेच्यू ( कत्था ) तथा कैलम्बा इत्यादि सम्मिलित करदी गई हैं । हिट० मे० भे० । For Private and Personal Use Only : श्राता यह पोषक तथा स्नेहकारक है और सीलोन मॉस ( चीनी घास नं० १ ) के समान व्यवहार में है | यह उत्तम आहार है। इं० मे० मे० । श्रगरई agarai - हिं० वि० [सं० अगरु ] श्यामता लिए हुए सुनहला संदली रंगका अगर | अग़रता gharatá-वर ब० छोटी मांई का फ़राशवृक्ष ) Tamarix gallica, वृत्त Linn.
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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