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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टाङ्ग हदयम् ७६४ अष्टादशाङ्गः अष्टाङ्गहृदयम् ashtanga-hridayam--स. शतावर, शर, इक्षु, दर्भ, कास और शालिधान्य क्ली. वाग्मट विरचित वैधक ग्रंथ । अष्टांग मूल । वै० निघ०। आयुर्वेद के प्रत्येक अंग का सार सार ग्रहण करके रचा गया। अस्तु, यह सब अंगों का सारभूत अष्टादश शतिक महाप्रसारणो तैलम् ashtaअष्टांग हृदय है । वा० सू० १ ०। dasha shatika-maha-prasārani tailam-स. क्लो० गन्धाली पञ्चांग १२० श्रष्टाङ्गावलेहः,-हिका ashtangavalehah,hika-स० पु०, स्त्रो० सन्निपात ज्वर तथा तो०, शतावरी ४०० तो०, केतकीमूल ४००तो०, हिक्का व श्वासादि में हितकर यांग विशेष । अश्वगंध ४०० ता०, दशमूल ४०० तो०, खिरेटी __ योग तथा निर्माण-कम-कायफल, पोहकर मूल ४०० तो०,कुरण्टा ४०० तो०,इनको १०२४ मूल, काकड़ासिंगी, अजवाइन, सौंफ, सांठ, तो. जलमें पकाएँ, जब १००वाँ भाग शेषरहे तब मिर्च, और पीपल ये सब औषध समान इस क्वाथसे दुगुना और क्वाथ लें । काँजी और दही भाग लेकर चूर्ण करले । इस चूर्ण को का पानी २५६ तो०, दुग्ध, शुक्र, ईख का रस, अदरख के रस तथा शहद में मिलाकर चाटें ।। बकरे के मांस का रस प्रत्येक - ४.४ सेर, तिल तैल १०२४ तो० | कल्कार्थ-भिलावाँ,तगर, सोंठ, गुण-कफ, ज्वर, खांसी, श्वास, अरुचि, चित्रक, पीपल, कचूर, वच, स्पृका, प्रसारिनी, वमन, हिचकी, कफ और वातनाशक है । भा० पीपलामूल, देवदारु,शतावर,छोटी इलायची,दालम० १ भा० । सा० कौ० । च० द० । भैषः । चीनी, नेत्रबाला, कूट, नस्वी, बाल छड़, पुष्करमूल . अष्टाङ्गी ashtāngi-हिं० वि० [स] पाठ चन्दन, सारिवा, कस्तूरी, अगर, मनी, नख, अंगवाला। शिलाजीत, केशर, कपूर, विरोजा, हल्दी, लवंग, अष्टाङ्गोरसः ashtangorasab-स. पु. रोहिपतृण, सेंधानमक, कंकोल, पालक, नागरगन्धक,पारा, लोहभस्म, मण्डूर भस्म, त्रिफला, मोथा, कमल, दारुहल्दी, तेजपत्र, कचूर, रेणकात्रिकुटा, चित्रक, भांगरा प्रत्येक समान भाग लेकर सेमल और गिलोय के क्वाथ से ३ पहर घोटकर बीज, लोबान, श्रीवास (धूप), केतकी, त्रिफला, छाया में सुखाएँ । रक्त धमासा, शतावरी, सरल, कमल केशर, मेहदी, खस, वालछड़, जीवनीयगण, पुनर्नवा, दशमूल, मात्रा-४ मा० । उचित अनुपान के साथ असगंध, नागकेशर, रसवत, कुटकी, जावित्री, सेवन करने से हर प्रकार के अर्श का नाश होता सुपारी, शलई का गोंद प्रत्येक १२-१२ तो० है । रस० यो० सा०॥ ले मन्दाग्नि से तैज पकाएँ । सिद्ध होने पर मा. अष्टादश ashradasha-प्रकारह । ( Eigt- लिश करें तो सम्पूर्ण वात व्याधियों दूर हो। teen, ) इसे नस्य, पान और वस्ति कर्म में भी प्रयुक्र अष्टादश धान्यम् ashtadasha-dhāsyam किया जाता है। विशेष गुण देखो-वंग से. -स. क्ली. १८ प्रकार के धान्य विशेष जैसे सवात व्याधिचिच.द.वा०व्या० कलाय (मटर आदि), गोधूम, श्राढ़की, यव, याव. वि० । नाल (मक्का), चणक, मसूर, अतसी, मूंग, तिल, अष्टादशाङ्गः ashtadashāngali-स' पु. कुलथी, श्यापाक ( साँवाँ), माष, राजमाष, सन्निपातज्वरोक कषाय विशेष | यह चार प्रकार वत्तल, हरिक, कंगु और तेरणा । वै० निघ० । का है--(१) दशमूल्यादि, (२) भूनिम्बादि, अष्टादश मूलम ashtadasha-mulam-स! (३) द्राक्षादि (४) और मूल कादि इनमें से क्लो०१८ प्रकारकी जड़ें यथा-विल्व, अरणो,सोना प्रथम-दशमूली, कचूर, भंगी, पोहकरमूल, पाठा, गाम्भारी, पाठा (निर्विषी),पुनर्णवा, वाट्या दुरालभा, भार्गी, इन्द्रयव, पटोल और कटुरो. , लक, माषपर्णी, जीवक, एरण्ड, ऋषभक, जीवंती, हिणी इन्हें अष्टादशांग कहते हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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