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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रारभूत्रम् ७६२ अष्टवर्ग प्रतिनिधिः अष्टमूत्रम् ashta-mitram-सं० क्ली० पाठ | अष्टवashta-vargah-सं० प. जानवरों का गूत्र ( The urine of the अष्टवर्ग ashra-varga-हिंः संज्ञा पु. eight animals.) ! उनके नाम निम्न (A class of eight principal me. प्रकार हैं : - dic :ments, Rishabhaka etc.) (१) गो, (२) बकरी, (३) भेड़, (४) + अाठ ओषधियों का समाहार । मेदा प्रभृति पाठ .. भैंस, (१) घोड़ी, (६) हस्तिनी, (७) उष्ट्री ओषधियाँ । यथा-१ मेदा, २ महामेदा, और (८) गधी । वै० निघ० | ३ जीवक, ४ ऋषभक, ५ ऋद्धि, ६ वृद्धि, अष्ट मूर्ति रसः asata-murti-rasah-सं० ७ काकोली और नक्षीर काकोली । प० मु.। : पु० सोना, चादी, ताम्बा, सीसा, सोनामाखी, "जीवकर्षभकौमेदे काकोल्या वृद्धि वृद्धिको रूपामाखी, मैनमिल प्रत्येक समान भाग ले | एकत्र मिलितैरेतैरष्टवर्गः प्रकीर्तितः” । जम्बीरी के रस से भावित कर भूधरयन्त्र में रा०नि०व० २२ । .. .पहर तक पुट दे फिर चूर्ण कर रखले। गुण-शीतल, अतिशुक्रल, वृंहण, दाह, मात्रा-१ रत्ती उचित अनुपान से क्षय, पांडु रक्तपित्त तथा शोषनाशक और स्तन्यजनक एवं विषमज्वर तथा रोग मात्र को समूल नष्ट करता गर्भदायक है। मद०व०१ । रक्रपित्त, व्रण, वायु है। रस. यो० सा० । और पिशनाशक है । राज. । हिम, स्वादु, बृंहण, अष्ट मुलम् ashta-mulam-सं० त्रि. स्वचा, गुरु, टूटे हुए स्थान को जोड़ने वाला, कामवद्धक, · मांस, शिरा, स्नायु, अस्थ, सन्धि, कोट्टा तथा बलास (कफ) प्रगट करतो एवं बलवद्धक है तथा मर्म ये पाठ मूल कहे जाते हैं सु० चि० तृष्णा, दाह, ज्वर, प्रमेह और क्षय का नाश करनेवाला है। भा० पू० १ भा० । अष्टमौक्तिक स्थानम् ashta-mouktika ATT afafafst: ashțavarga-pratini. -sthānam-सं० क्ली. मोती की उत्पत्ति के पाठ स्थान, जैसे, शंख, हाथी, सर्प, मछली, dhih--. . मेदा आदि श्रोषधियों के . अभाव में उनके समान गुण-धर्म की ओषधियों मेंढ़क, वंश ( बॉस ), सूअर तथा सीप इन पाठ प्राणियों में मोती होता है । वै० निघ० । देखो का ग्रहण करना, यथा-मेदा महामेदा के प्रभाव में शतावरी, जीवक ऋषभक के स्थान में भूमि मोतो। . प्रष्टयामिक वटी ashta-yamika. vati-सं० कुष्मांड मूल ( पताल कुम्हड़ा, विदारीकंद), स्त्री०चांगेरी चूर्ण ६ मा०, पारा, हल्दी, सेंधानमक काकोली, क्षीर काकोली के अभाव में अश्वगंधा प्रत्येक दो भाग इनको गाय के दही में मईन कर मूल (असगंध ) और ऋद्धि वृद्धि के स्थान में वाराहीकन्द । भा०पू०१ भा० । कोई कोई 'झाड़ी बेर प्रमाण की गोलियाँ बनाएँ । इसे ज्वर इसकी प्रतिनिधि इस प्रकार लिखते हैं, जैसे'पाने से३ रोज़ बाद गरम पानी से लेने से जीवक, ऋषभकके अभावमें गुडची वा वंशलोचन, ८ पहरके अन्दर नवीन ज्वर नष्ट होता है । रस० मेदा के अभाव में अश्वगंधा और महा मेदा के यो० सा०। प्रभाव में शारिवा और ऋद्धि के अभाव में बना अष्टलोह(क) ashta-lohi,-ka-हिं०संज्ञाप'०। और वृद्धि के स्थान में महाबला लेते हैं। कोई अष्टलोहकम् ashta-louhakam-०क्ली° | कोई ऐसा लिखते हैं• अष्ट प्रकार के धातु विशेष | स्वर्ण, रौप्य, ताम्र, रज, शीष ( सीसक), कान्त लौह, मुण्ड लौह, प्रतिनिधि-काकोली ( मूसली श्याम .), और तीचण लौह । पञ्च लौह समेत कान्त, मुण्ड हीर काकोली ( मूसली श्वेत ), मेदा (सालच तथा तीचण लौह । रा०नि० व० २२ । देखो मिश्रीं छोटे दाने की), महामेदा ( सकाकुल अष्टधातुः। मिश्री ), जीवक (लम्बे दाने के सालब), ऋष For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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