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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनकुली ७६० अष्टपादपः महापन, शंख, कुलिक, कंबल, अश्वतर, धृतराष्ट्र - (Lead ) और लौह ( Iron.)। किसी - और बलाहक हैं। किसी ने पीतल के स्थान में पारद लिखा है। अष्टकुलो ashtakuli-हिं० वि० [सं०] सापों देखो-अष्टलोहक । के आठ कुलों में से किसी में उत्पन्न । AZJISTI asbța-dhatrí) a भ्रष्टकोण ashtakona-हिं० संज्ञा पु. [सं०] | स० अष्टधाती ashta-dhati -हिं० वि० (१) वह क्षेत्र जिसमें पाठ कोण हों। [ सं० अष्टधातु ] अष्ट धानुओं से बना वि० [सं०] पाठ कोने वाला । जिसमें पाठ | __ हुआ । (A co 'pound of eight metकोने हों। als. ) अष्टगंध ashta-gandha हिं० संज्ञा पु. अष्टपद ashta-pada-हिं० संज्ञा प देखो [सं०] पाठ सुगंधित द्रव्यों का समाहार | श्रष्टपाद । दे० गंवाष्टक । अष्टपदी ashta-padi-सं ) स्त्रो० वेन नाम से भष्टगाधः ashta-gadhah सं० पु. (१) प्रसिद्ध एक पुष्प सुप विशेष । बेल फुलेर--गाछ ऊर्ण नाभि । See-urna-nābhih. । (२) -बं०। (A shrub named Vela.) शरभ । See-.sharabha. गुण -शीतल, लघु, कफ पित्त तथा विष अष्टगुण मण्डः ashta-guna-mandah- | नाशक । मद० व.३। .. -सं०प० जिस गाड़ में धनिया, सोंठ, मिर्च, शष्ट पलम् ashti-palam- सं० क्ती. शराव पीपल, सेंधानमक और छाछ डालकर भूना मान (=६४ तो० अर्थात् १ सेर १ ) | sht. जाए तथा भगी हींग और तैल पडा हो उसे | jáva (A measurement=one seअष्टगुणमण्ड कहते हैं। er.) गुण-दीपन, प्राणदाता, वस्तिशोधक, रुधिर अष्टलक घृतम् asti.palaka-ghri ] वद्धक, ज्वरनाशक और प्रत्येक रोगों को नष्ट tam--सं. कली. करता है । यो० त०। अष्टपल घृतम् ashta-pla-ghritam | - -सं० क्ली अप्टदल ashta-dala-हिं० संज्ञा प. [सं०] । अाठ पत्ते का कमल । -सं० क्लो० ग्रहणी नाशक योग विशेष । वि० [सं०] (१) पाठ दल का । (२) यथा सोंड, मिच, पीपल, हड़, बहेड़ा, श्रामला, प्रत्येक ४-४ तो० इनका कन्क बनाएँ और पाठ कोन का, पाठ पहल का। अष्टधातुः ashta-dhātuh-सं० प० ।। . बेलगिरी ४ तो०, गुड़ १ पल तथा घृत ३२ तो० को कल्क युक पकाएँ। अष्टधातु ashta-dhātu-हिं• संज्ञा स्त्री० इसे उचित मात्रा में भक्षण करने से मन्दाग्नि .. अाठ धातुएँ यथा--सुवर्ण, २-रूपा, ३-शीष १ (सीसक), ४-तानं ५-पित्तल, ६-रंग (राँगा), रोग नष्ट होता है। बंग से० सं० ग्रहणी चि० । च० द० । ७-कान्त लोह, और:-मुण्डलौह । किसीने पिसल के स्थान में तीक्ष्ण लौह लिखा है । र० सो. अष्टपात्-दः ashtapāt,.dah-सं० प० सं० टी० । अष्टपाद ashta pāda-हिं० संज्ञा पु. - नोट--किसी किसी ने इसकी गणना इस (१)कश्मीर देशीय शरभ, शरध, शार्दूल । मद० - प्रकार की है-१-सुवर्ण (Gold.), २-रूपा- व० १२ । (२) ऊण नाभि, लूता, मकड़ी। चाँदी (Silver.),३ ताँबा (Copper.) हे० च० ४ का० । ४-पीतल ( Brass.), ५-राँगा ( Tin.), | अष्टपादपः ashta-pādapah-सं० पु वृक्ष ६-जस्ता ( Bell-metal. ), ७-सीसा भेद । (A sort of tree. ) वै० निघ । For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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