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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अश्वपाल हॉर्सवीड ( Horse-weed ), नॉवरूट प्रदाह (Acute cystitis), वृक्षारमरी (Knobroot)-६०।। ( Renal calculi ), जलोदर ( Dr. उश्बुल, बल, खुश्बुल रेल, हब्रु ल । opsy ), श्वेत प्रदर, आमवात,अजीण, श्वास जज़ र-अ.। संगबीख, ग्याहे अस्प-फा० । और किसी किसी हृद्रोग में वर्तते हैं। पत्थरजड़ी-उ०। । यद्यपि सिवा इसके कि सूक्ष्म मात्रा में यह तुलसी वर्ग स्थानिक संकोचक तथा अधिक मात्रा (A. 0. Labiatee.) पित्तनिस्सारक विरेचन है, इसके इन्द्रिय व्यापानोट ऑफिशल ( Not oficial) रिक क्रिया के विषय में क्रियात्मक रूप से कुछ उत्पत्ति-स्थान-उत्तरी अमरीका । भी ज्ञात नहीं; तथापि अमरीका में इसका अनेक वानस्पतिक-विवरण-इस वनस्पति का रोगों में उपयोग करते हैं। काण्ड सीधा लगभग ४ इञ्च के लम्बा होता है हठीले पूयमेह, अश्मरी तथा वस्तिप्रदाह में जिसपर छोटी छोटी ग्रंथिमय विषम शाखाएँ मूत्र विषयक श्लैष्मिक कलाओं के लिए यह अवसादक है और अर्श वा गुदाक्षेप में मूल्यहोती है। कांड पर बहुत से उथले चिह्न होते है । यह अत्यन्त कठिन होता है । इसका वहिः वान सिद्ध हो चुका है। श्राक्षेपहर रूप से वर्ण' धूसर श्वेत तथा अन्तः श्वेत या सफेदी कुक्कुर कास, (Ohorea ) तथा हृदय की धड़कन में इसका उपयोग किया जाता है। मायल होता है। त्वचा बहुत पतली, जड़ असंख्य होती जो सरलतापूर्वक टूट जाती हैं। अश्वदंष्ट्रक: ashvadanshtrakah-सं० पु०(१) गोक्षर । गोखरू-हिं० । ( Tribगंध-लगभग कुछ नहीं, स्वाद-कटु तथा ulus terrestris, Linn.) वै० निघ० । मूच्र्छाजनक । (२) हिंस्र जन्तु विशेष । सु० । रासायनिक संगठन-इसमें राल ( Re- | प्रश्वदंष्ट्रा ashva-danshtra-सं० स्त्री० sin), कषायिन ( Tannin), श्वेतसार, गोक्षुर, गोखरू । (Tribulus terrestris, लुभाब और मोम होते हैं। Linn.) भा०पू०१ भा० । कार्य-अवसादक, आक्षेपशामक, संकोचक अश्वनाला ashvanāla-सं० स्त्री० ब्रह्मसर्प और बल्य । नामक सर्प विशेष | त्रि० । ( A serpentमात्रा-१५ से ६० ग्रेन (७॥ से ३० रत्ती named Brahma. ) अर्थात् १ से ४ ग्राम)। अश्वनाशः,-कः,-नः ashvanāshah, kah: औषध-निर्माण-टिकचूरा कोलिनसोनी Ti. nah-सं० पु. श्वेत करवीर | सफ़ेद कनेर nctura collinsonce ) ले० । अश्व- -हिं० । ( Nerium olorum ( The सृणासब-दि० । तभूतीन अश्बुल नल-अ.। white var. of-) रा०नि० व०१०। निर्माण-विधि-कोलिनसोनिया की जड़ कुचली | अश्वपर्णिका,--र्णी ashvaparnika, rniहुई एक भाग, मद्यसार (६०००) १० भाग सं० पु. भूतकेशीलता 1 भूतकेश-हिं० । श्वेत "मेसीरेशन की विधि से टिंकचर बना लें। - दूळ-खं० । ( Corydalis govon मात्रा-३० से १२० बूंद (मिनिम) । इसका | iana.) एक फ्ल्युइड ऐक्सट्रक्ट (तरल सस्व ) भी | अश्वपाल: ashvapālah-सं० पु. होता है जिसकी मात्रा १५ से ६० मिनिम • श्वपाल ashvapāla-हिं० संज्ञा पु अश्व रक्षक, अश्वसेवक, साईस । ( A groप्रभाव तथा उपयोग-इसको उम्र वस्ति । om.) २ For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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