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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अश्वगन्धाभ्रकः प्रश्वजीवनः Qran-3187: ashvagandhábhrakah लेकर मिट्टी की कड़ाही में डालकर मंद अग्नि से -सं० पु० - सेर प्रमगंध का क्वाथ बनाकर पकाएँ। जब पकते पकते प्राधा दूध शेष रहे छाने । फिर उसमें १६ तो० घी, ३२ तो० अभ्रक तब ऊपर बनाए हुए चूर्णो को उसमें मिला दें ! और सबके बराबर हल्दीका चूर्ण मिलाएँ । और जब दूध और घी घोटते घोटते पृथक् न मालूम केवाँच के बीजोंका चूर्ण, त्रिफला, विजात, नागर- पड़े तब उतार लें । फिर जीरा, पीपलामूल, मोथा, पृथक पृथक् चार चार तो० मिलाकर तालीसपत्र, लवंग, तगर, जायफल, खस, सुगंध. पकाएँ पाक तैयार होने पर उंडा कर उसमें ३२ बाला, नलद (बारीक खस), बेलगिरी, कमल तो० शहद मिलाएँ। के फूल, धनियाँ, धोके फूल, वंशलोचन, मामला, खैरसार, घनसार (कपूर), पुनर्नवा, अजगंधा, मात्रा-बलानुसार देने से राजयक्ष्मा, उर: चित्रक और शतावरी प्रत्येक प्राधा तो. और क्षत, सय, वात रोग और कृशता को दूर करके स्त्रियों में अत्यन्त हर्ष को उत्पन्न करता है। रस० शुद्ध पारा २ तो० तथा रमसिंदूर २ तो० लेकर यो सा०। बारीक चण करके लाएँ। फिर उंडा होने पर शहद मिलाकर चिकने बर्तन में रक्खें। अश्वगन्धारिटः ashvagandharishtah-सं. पु. असगंध तुला, मुषली ८० तो०, मजो:- मात्रा-२ तो०। हड़, हल्दी, दारुहल्दी मुलहनी, रास्ना, विदागेकंद, , गुण-खाँसी, दमा, हिचकी, अजीण वातअर्जुनकी छाल, नागरमोथा, निशोथ अनन्ता (दूब) रक्र, प्लीहा, वातरोग, श्रामवात, सूजन, वादी श्यामलता प्रत्येक ८०-८० तो०, श्वेत चन्दन, बवासीर, पांडु, कामला, मंग्रहणी, गल्म रोग, वात रतचंदन, वच, चित्रक प्रत्येक ६४-६४ तो० इनको कफ के विकार तथा मंदाग्नि को दर करता और पूर्ण कर द्रोण जल में पकाएँ । जव , द्रोण बाल को, स्त्रियों तथा अल्पवीर्य वाले पुरुषों की काय शेष रहे तब शीतल हो जाने पर धवपुष्प | काम वृद्धि करता है । रस. यो० सा०।। १२८ तो०, उत्तम शहद १५ सेर, सोंठ, मिर्च, अश्वगन्धिका ashva.gandhiki-सं० स्त्री० पीपल १६-१६ तो०, दालचीनी, इलायची. तेज अश्वगंधा, असगंध । (Witharia Somnia पत्र ३२ तो०, फूल प्रियंगू ३२ तो०, नागकेशर fera.) ग.। १६ तो० चूर्ण कर उक काथ में मिश्रित कर उत्तम पात्र में रख एक मांस पयंत रखने से यह अरिष्ट | अश्वगोष्ठम् ashvagoshtham-सं० क्ली. सिद्ध होता है। वाजिशाला, अस्तबल, तबेला, घुड़साल, । (A मात्रा-१ से २ तो। stabie. ) अल-इसके विधिवत् सेवन करने से मूर्छा, अश्वघ्नः ashvaghnah-सं० पु. श्वेत करवीर अपस्मृति, शोष उन्माद, दुर्बलता, पर्श, मंदाग्नि वृक्ष, सफेद कनेर का पेड़ । श्वेतकरवी गाछ-बं०। और समस्त वात व्याधियों का नाश होता है। Nerium odorum ( The white भैष० र० मूर्छा चि.। var. of-) रा.नि. ५०१०। अश्वगन्धावलेहः ashvagandbavale hah | अश्वचक्र ashvachakra-हिं० संज्ञा पु. -सं० पु. असगंध चूण ४० तो०, सोंठ चण [सं.] (१) घोड़े के चिजों से शुभाशुभ का २० तो०, पीपल चूर्ण १० तो० और काली विचार । (२) घोड़ों का समूह । मिर्च ४ ती०, दालचीनी, छोटी इलागची, तेजपात अश्वजीवनः ashvajivanah-सं० पु. और नागकेशर चूर्ण प्रत्येक ४ तो०, गाय का चणक। चना-हि. । छोला-बं०। Gran दूध २०० तो०, शहद ५० तो०, गाय का घी or chick pea (Cicer ariatin. २१ तो०, राब १०० तो०, सबको पृथक् पृथक् um.) वै० निघ । For Private and Personal Use Only
SR No.020089
Book TitleAyurvediya Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjitsinh Vaidya, Daljitsinh Viadya
PublisherVishveshvar Dayaluji Vaidyaraj
Publication Year1934
Total Pages895
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size29 MB
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